HomeJob ProfilesTender NoticeBudgetRTI Act 2005Act & RulesDealersG2G LoginMain     हिंदी में देंखे    
  Welcome to Online Portal of Agriculture    
Main Menu
About Us
Achievements
Action Plan
Thrust Areas
Functions
Targets
Gallery
Organisational Structure
Agro Climate Zone
Grievance Redressal Cell
Package of Practice
Framework of Agricultural Activities for 52 Weeks
Land Use Pattern
NBMMP
Other Useful Links
Agriculture Mobile Portal
Package of Practice

अदरक

अदरक हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण मसालेदार व नगदी फसल है। यह लगभग 2000 हैक्टेयर भूमि पर उगाया जाता है तथा लगभग 1600 टन उत्पादन होता है। अदरक की खेती मुख्यतः सिरमौर, सोलन, शिमला, बिलासपुर, मण्डी व कांगड़ा जिलों में की जाती है। ताजा एवं सूखा ;सोंठद्ध अदरक देश के दूसरे भागों में भेजा जाता है। इसकी खेती 500 से 600 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सफलता से की जाती है।

उन्नत किस्में:

हिमगिरी: यह निचले तथा मध्यवर्ती क्षत्रेा के लिए उपयकुत किस्म है तथा इससे अध्कि पदैावार ली जा सकती है इस किस्म पर गटठी सडऩ रागे का कम का कम प्रकोप होता है
निवेश सामग्री:

  प्रति हेक्टर प्रति बीघा प्रति कनाल
बीज ( क्विंटल ) 20 1.60 0.80
खाद एवं उर्वरक
गोबर की खाद (क्विंटल ) 300 24 12
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 200 16 8
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 315 25 12
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 80 6.5 3.2
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 156.3 12.5 6.3
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 41 3.3 1.7
यूरिया ( किलो ग्राम) 175 14 7
मल्च
हरी पत्तियां (टन) 12.5 1.0 0.5
या सूखी पत्तियां (टन) 5 0.4 0.2
गोबर की खाद (टन) 10 0.8 0.4

सस्य क्रि यायें:

अदरक की गांठे जिनमें कम से कम 2-3 आंखें व 30-40 ग्राम वजन वाली तथा स्वस्थ व रोग रहित होनी चाहिए।

विधि1 :

खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, म्यूरेट आॅफ पोटाश की पूरी मात्रा एवं यूरिया की आध्ी मात्रा मिट्टी में मिला दें तथा शेष यूरिया मिट्टी चढ़ाने के समय बीजाई के एक या दो महीने बाद टाप ड्रेस कर दें।

विधि2:

गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद, म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया खाद की आधी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया खाद की शेष मात्रा मिट्टी चढ़ाने के समय डालें ।

बीजोपचार

बीज को भण्डारण एवं बीजाई से पहले 10 गा्म बैकिवस्टीन 50 डब्ल्यू पी तथा 25 गा्म इंडोफिल फल एम-45 प्रति 10 लीटर पानी मे घाले कर एक घण्टे तक उपचारित कर ले ।

दूरी:

उपचारित कन्दों को पंक्तियों में 30-45 सैंटीमीटर व कन्दों के बीच की दूरी 20 सैंटीमीटर रखनी चाहिए तथा 3-4 सैंटीमीटर की गहराई पर बीजना चाहिए। मक्की की फसल का प्रयोग अदरक में छाया देने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए अदरक की हर तीसरी कतार के उपरान्त मक्की की एक कतार लगाएं ।

बिजाई का समय

निचले क्षेत्र : मध्य जून
मध्य क्षेत्र : मध्य अप्रैल - मध्य मई
ऊंचे क्षेत्र अप्रैल

सिंचाई व निराई-गुड़ाई :

अदरक की फसल के लिए भूमि में बराबर नमी बनी रहनी चाहिए। खेत खरपतवार रहित होना चाहिए तथा प्रत्येक गुड़ाई के समय मिट्टी अवश्य चढ़ाएं । यदि पहली मल्च सड़ जाए तो 45 दिन बाद दूसरी मल्च की तह लगा दें ।

खुदाई:

गांठें जब तैयार हो जाएं तो खुदाई करके निकाल लें तथा बाजार भेज दें। बाजार के लिए सितम्बर महीने में पुरानी व नई गाँठों को निकाल लें व बीज के लिए नवम्बर-दिसम्बर में गांठों को खेत से निकाला जाता है।

अदरक से सौंठ तथा सफेद सौंठ बनाने की विधि

सौंठ बनाने के लिए अदरक के कन्दों को बीजाई के 7-8 महीने बाद निकाले जब पत्ते पीले पड़कर गिरना शुरू कर दें। कन्दों को अच्छी तरह पानी से धेएं ताकि मिट्टी तथा जड़ो कन्दों से साफ हो जाएं। इसके उपरान्त बाँस या लकड़ी के चाकू बनाकर कन्दों के छिलकों को निकाल दें तथा इस बात का ध्यान रखें कि छिलका गहरा न निकले। छिलका निकालने के लिए लोहे के चाकू का प्रयोग न करें। अदरक के कन्दों का छिलका निकालने के लिए ड्रम का प्रयोग भी किया जाता है। छिलका निकालने के बाद कन्दांे को 8-10 प्रतिशत नमी तक ध्ूप में सूखाएं। सफेद सौंठ बनाना : उपरोक् विधि द्वारा सूखाए गए अदरक को चूने के पानी ;10-20 ग्राम चूना प्रति लीटर पानीद्ध में 4-6 घन्टे तक डुबोएं तथा निकालने के उपरान्त धूप में सुखाएं इस विधि को 2-3 बार तक दोहराएं ताकि सौंठ का रंग सफेद हो जाए।
उपज ( क्विंटल ) प्रति हैक्टेयर प्रति बीघा प्रति कनाल
  100-150 8-12 4-6

भण्डारण:

भण्डारण के लिए रोगमुक्त क्षेत्रा से रोगरहित मोटी तथा फूली हुई गठ्ठियां ही चुने। अदरक की गठ्ठियों का भण्डारण करने से पहले उनका इंडोफिल एम-45 ;0. 025 प्रतिशत तथा 0.1 प्रतिशत बैविस्टीन ;10 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी के मिश्रण से 60 मिनट तक उपचार करें । इससे गठ्ठियां सड़ने से बचती है। बीज गठ्ठियों को उपयुक्त गड्ढों में रेत की परतों से ढक कर रखा जाता है और ऊपर से लकड़ी का तख्ता रखा जाता है। हवा की उचित मात्रा प्राप्त करवाने के लिए तख्ते में छेद करते हैं और बाकी के भाग को गोबर से लेप दिया जाता है। तख्ते के ऊपर मिट्टी की ऊँची तह बनाई जाती है ताकि बाहर से पानी गढढे में न जाए।

बीज अदरक का भण्डारण:

1. नमी रहित क्षेत्रा में 1*1*1 मीटर आकार का गड्ढा बनायें तथा इसकें किनारों पर पत्थर लगायंे।
2. गड्ढे में 10 सैं. मी. मसेटी रेत की तह बिछायें।
3. मोटी और रोगमुक्त गठ्ठियां चुने तथा दिसम्बर में एक घण्टे के लिए 25 ग्राम इंडोफिल एम-45 और 10 ग्राम बैविस्टीन प्रति 10 लीटर पानी के घोल में 60 मिनट तक रखें तथा छाया में सुखा लें।
4. इन उपचारित गठ्ठियांे को 48 घन्टे के बाद गड्ढे में उसकी उंचाई से 10-12 सैं. मी. नीचे तक फैला कर लकड़ी के तख्ते से ढक दें।
5. तख्ते में सुराख या दरार रखें तथा शेष भाग को गोबर से लेप दें ।
6. गड्ढे का तापमान 12-13 सेल्सियस तथा आपेक्षित नमी 65 प्रतिशत रखें। 7. निचले पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल-मई में गठ्ठियांे को गड्ढे से बाहर निकालें तथा रोगी गठ्ठियो को निकाल दें । पनीले ध्ब्बे वाली गठ्ठियों के सड़े भाग को काटने के बाद स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (2 ग्रा./10 लीटर पानी) में 30 मिनट के लिए डुबोकर रखें ।
8. उपचारित गठ्ठियों को पुनः गड्ढे में रखें। 
पौध् संरक्षण
लक्षण

उपचार

बीमारिया  
गठ्ठी सड़न रोग: गठ्ठियां नरम और कमजोर गुद्दे वाली हो जाती है । रेशे के सिवाय सभी पतियां सड़ जाती है, पत्ते पीले पड़ जाते है और उन पर पनीले स्थान बन जाते है व नीचे से सड़ने शुरू हो जाते हैं । 1. रोगमुक्त गठ्ठियों का प्रयोग करें ।
2. रेागमुक्त गठ्ठियों को भण्डारण से पूर्व तथा बुआई से पूर्व 60 मिनट के लिए 25 ग्रा. इंडोफिल एम-45 और
10 ग्रा. बैविस्टीन 50 डब्ल्यू पी प्रति 10 ली. पानी के घोल में रखे तथा इसे छाया में 48 घन्टे के लिए सुखायें।
3. निचले तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में प्रभावित पौधें को कापर ओक्सिक्लोराईड ( 3 0 गा ब्लाईटीक्स-50, प्रति 10 लीटर पानी) से अगस्त और सितम्बर में सिचाई करें ।
4. अदरक की गठिठ्यां को प्रातः 11-11. 45 के बीच पोलेथिन थेलियो(25 एम.एम.) मे डालकर ध्पू मे रखे । इसके उपरान्त अदरक को छाया मे सुखा ले ।या ध्पू मे रखी गठिठ्यो गर्म पानी (45डि॰स.) मे आधे घण्टे तक डुबाये | इसके पश्चात इसे छाया मे सुखा ले ।
पीलीया रोगः पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा पौध्े मुरझा जाते है। गठ्ठियां सड़ जाती हैं। रोग कहीं-कहीं प्रकट होता है। उपरोक्त
पत्ती ध्ब्बा रागेः अनियमित सफदे रगं के काले किनारे वाले ध्ब्बे पत्तियांे पर बन जाते हंै तथा पत्तांे के किनारे भूरे हो जाते है रागे पक्रट पर 30 गा् . ब्लाइर्टक्स-50 प्रति 10 लीटर पानी के घाले का छिड़काव हर दस दिन बाद करे|
फाईलोस्टिकटा पत्ता ध्ब्बा रोग :पत्तों पर हल्के गहरे रंग के ध्ब्बे बनते हैं। फसल पर हैक्साकोनाजोल 5 ई. सी. कनटॅफ (0.1ः)का छिड़काव करें ।
भण्डार का गठ्ठी सड़न रोग : गठ्ठियों पर पनीले ध्ब्बे बन जाते हैं। बुआई से पूर्व गठ्ठियों को 30 मिनट के लिए स्ट्रप्टोसाईक्लिन (2ग्रा./10 लीटर पानी) के घोल में रखें।
कीटः जड़ ग्रन्थि सूत्राकृमि : ये सूत्राकृमि गठ्ठियों मे सड़न तथा पीलिया बढ़ाने में सहायक होते हैं 1. बीज-गठ्ठियों का चुनाव सड़न रहित क्षेत्रा से करें। 
2. अन्न के साथ वाला फसल चक्र अपनाएं। विशेषतयः तीन वर्ष में एक बार धन अवश्य लगाएं।
3. खेत तैयार करते समय कारबोफ्रयूरान (फ्रयूराडान 3 जी) 30 कि. गा्. प्रति हैक्टेयर डालें।

फसल रोगों की एकीकृत व्यवस्था:

1. स्वस्थ बीज का प्रयोग करें व पांच वर्षीय फसल चक्र अपनाएं। 
2. बीज को एक घन्टे के लिए 25 ग्रा. इंडोफिल एम-45 और 10 ग्रा. बैविस्टीन को 10 लीटर पानी के घुले मिश्रण में डुबोकर 48 घण्टे के लिए छाया में सुखाएं। 3. रोगी भागांे को नष्ट करें तथा प्रभावित पौधें को काॅपर आक्सीक्लोराईड (30 ग्रा. ब्लाईटाक्स-50 प्रति 0 ली. पानी) से मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में अगस्त में तथा निचले पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर में सीचें । जल निकास का पूर्ण प्रबन्ध् रखें।
4. पत्ता ध्ब्बा रोग होने पर कापर आक्सीक्लोराईड का छिड़काव हर 10 दिन बाद करें।
Main|Equipment Details|Guidelines and Publications|Downloads and Forms|Programmes and Schemes|Announcements|Policies|Training and Services|Diseases
Visitor No.: 08894548   Last Updated: 13 Jan 2016