केल
|
किस्में:
|
कर्म साग |
बीजाई का समय:
|
निचले क्षेत्र |
अक्तूबर-नवम्बर |
मध्य क्षेत्र |
अगस्त-सितम्बर |
ऊंचे क्षेत्र |
मार्च-अप्रैल,जून |
|
फसल प्राप्ति का समय
|
गर्मियों के अन्तिम दिनों से सर्द ऋतू तथा बसन्त ऋतू के अन्तिम तक । |
अन्तर: 60*45 सैं. मी., 45*45 सैं. मी. |
निवेश सामग्री:
|
|
प्रति हैक्टैयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज (ग्रा.) |
350 |
30 |
15 |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
200 |
16 |
8 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
300 |
24 |
12 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
475 |
38 |
19 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
34 |
3 |
1.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
125 |
10 |
5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
34 |
3 |
15 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
97.5 |
8 |
4 |
|
नाईट्रोजन चार बराबर भागों में बाटं कर डाली जाती हैं, जससे पत्तियों का आकार और लम्बाई बढ़ती है इसकी फसल की कटाई उस समय की जाती है जबकि ऊपरी पत्ते तथा डठल नर्म होते हैं (बौनी किस्मों के लिए) लम्बी किस्मों की कटाई निचले तथा मध्यवर्ती क्षेत्रों में बसन्त )ऋतू मे की जाती है तथा शरद )ऋतू तक जारी रहती है। इस फसल को उगने के ढंग तथा खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग गांठ गोभी की तरह है। |
उपज: |
150-200 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर (12-20 क्ंिवटल प्रति बीघा या 6-10 क्ंिवटल प्रति कनाल) एक पौधे से उपज: 750 ग्राम |