खीरा
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कद्दू वर्गीय फसलों में खीरा हिमाचल प्रदेश के निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों की एक प्रमुख फसल है। आमतौर पर यह गर्मियों में उगाया जाता है लेकिन निचले पर्वतीय क्षेत्रों (ऊना, नालागढ़) में यह दरिया या खड्डों के किनारे खादर भूमि में सर्दियों में (दिसम्बर-जनवरी) में उगाकर किसान अच्छी कीमत लेते है। कद्दू वर्गीय सब्जियां प्रदेश में लगभग 2584 हैक्टेयर क्षेत्राफल में उगाई जाती हैं तथा पैदावार लगभग 77959 टन होती हैं। कद्दू वर्गीय सब्जियां की जल्दी एवँ अध्कि पैदावार के लिए पोलीथीन के लिफाफों में पौध तैयार की जा सकती है।
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उन्नत किस्में: खीरा-75: फल हल्के रंग के, 11 से 15 सैं. मी. लम्बे, प्रथम तुड़ाई 75 दिन के बाद व औसत उपज 150-190 किवटल प्रति हैक्टेयर । मध्य क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म। |
खीरा-90: फल काफी बड़े, 15-20 सैं. मी. लम्बे, प्रथम तुड़ाई 90 दिन के बाद औसत उपज 150-190 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर। मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म।
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पाइॅनसेट: फल गहरे हरे रंग के, 15-20 सैं. मी. लम्बे, प्रथम तुड़ाई 60 दिन के बाद व औसत उपज 120-125 क्विटल प्रति हैक्टेयर । निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म। |
के एच-1: यह एफ-1 संकर किस्म हैं। फल नर्म, 12-14 सैं. मी. लम्बे, हल्के रंग के होते हैं । यह किस्म शीघ्र तैयार हो जाती है (65 दिन) व औसत उपज 350-400 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर है। यह प्रदेश के क्षेत्रा-1 व क्षेत्रा-2 के स्थानों के लिए अच्छी किस्म है।
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खीरा हाईब्रिड-2: नई संकर किस्म ठण्डे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, पौधे लगभग 5 मीटर लम्बे तथा 4-5 शाखओं वाले, फल हरे, बेलनाकार, 20-30 सै. मी. लम्बे तथा40 दिनों में तैयार, औसत उपज 550-600 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर। |
निवेश सामग्री:
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज (कि. ग्रा.) |
3-4 |
240-320ग्रा. |
120-160ग्रा. |
खाद व उर्वरक |
गोबर की खाद(क्ंिवटल) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
200 |
16 |
8 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
315 |
25 |
13 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
100 |
8 |
8 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
157 |
12.5 |
6.3 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
59 |
4.7 |
2.4 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
175 |
14 |
7 |
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बीजाई व रोपाईः खीरे का बीज सीधा तैयार खेत में लगाया जाता है क्योंकि यह गर्मियों व बरसात की फसल है इसलिए इसे मेंढ़ें बना कर, छोटी-छोटी क्यारियां या ऊंची भूमि बनाकर बीज बोया जाता है। बीजने का उचित समय इस प्रकार हैः |
निचले पर्वतीय क्षेत्र : |
फरवरी- मार्च,जून |
मध्य पर्वतीय क्षेत्र : |
मार्च से मई |
ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रो : |
अप्रैल |
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नोट: खीरे की अगेती फसल लेने के लिए इसको ठण्ड के मौसम में पोलीथीन के छोटे लिफाफों में मिट्टी व गोबर की खाद का (1:1) मिश्रण भरकर बीज बोया जाता है। उन लिफाफों को पोलीहाऊस या बरामदों में रखा जाता है | जब भी मौसम खीरे लगने के लिए उपयुक्त हो तथा पौधें में चार पत्तियां आ जाएं तब इन लिफाफों में लगे पौधें का सीध तैयार खेत में प्रतिरोपण करें। यह विधि अपनाने से किसान जल्दी फसल से अच्छी आय ले सकते है। |
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पोधो को निमंलिखित दुरी पर लगाये
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पंक्ति से पंक्ति |
125-250 से . मी . |
पोधे से पोधे |
50-75 से . मी . |
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सस्य क्रियाऐ :
विधि -1 खेत को तैयार करते समय गोबर की खाद व सुपर फास्फेट की पूरी मात्रा तथा यूरिया व म्यूरेट आॅफ पोटाश की आधी मात्रा मिट्टी में बिजाई के समय मिलाएं। शेष यूरिया को दो भागों में एक महीने बाद व फूल आने के समय डालें। पोटाश की शेष आधी मात्रा अच्छी फसल बढ़ने पर दें।
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विधि -1 2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों मे एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूल आने के समय ड़ालें ।
खरपतावार की रोकथाम के लिए निराई-गुड़ाई समय पर करते रहें। सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। गर्मी के मौसम में 4-5 दिन के अन्तर पर सिंचाई आवश्यक है।
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तुड़ाई एवं उपज :
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जब फल की बढ़वार बन्द हो और वह हरे व चमकीले हो, उस समय फल तोड़ने चाहिए। खीरे की उपज (क्ंिवटल) इस प्रकार हैः |
प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
100-200 |
8-16 |
4-8 |
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बीजोत्पादन:
खीरा एक परपरागी फसल होने के कारण दो किस्मों में लगभग 800-1000 मीटर का अन्तर होना आवश्यक है। जिन पौधें में वाँछनीय आकार, प्रकार और रंग के फल न आएं, उन्हें अवांछनीय मानकर तुरन्त निकाल देना चाहिए। बीज उत्पादन के लिए जब फल पीला पड़ जाए तथा बाहरी चमड़ी में दरारें पड़ जाएं, तोड़ लेने चाहिए। फलों को लम्बाई में काटकर गुद्दे से बीज को हाथ से अलग करें। बीज को साफ पानी से धेएं और धूप में सुखाएं और उनका भण्डारण करें।
संकर खीरे का बीजोप्पादन: संकर खीरे के बीजोत्पादन के लिए मादा गाईनोसियस तथा नर मोनोसियस पैतश्क लाईनों का प्रयोग किया जाता है। मादा तथा नर लाईनों को खेतों में 3:1 के अनुपान में लगाया जाता है तथा परपरागण के बाद मादा लाईनों से फल तोड़कर संकर बीज निकाला जाता है। मादा लाईनो के प्रतिपादन के लिए 250 पी.पी. एम. सिल्वर नाईट्रेट के घोल का पौधें पर दो बार (2-3 पत्तों व 4-6 वाली अवस्थाओं में छिड़काव किया जाता है जिससे उनमें नर फूल निकल आते हैं तथा मादा गाईनोसियस लाईनों का प्रतिपादन हो जाता है। |
बीज उपज
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
1-2 क्विंटल |
8-16 कि. ग्राम . |
4-8 कि. ग्राम . |
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पोध संरक्षण |
लक्षण
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उपचार
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डाऊनी मिल्डयु: पत्तों पर हल्के पीले से भूरे कोणधर ध्ब्बे प्रकट होते है जिसके कारण पत्ते सूख जाते है व पौधे मुरझा जाते है। |
जुलाई के अन्तिम सप्ताह में इंडोफिल एम-45 (250 ग्राम/100 लीटर पानी) का छिड़काव करें और फिर रिडोमिल एम जैड (250 ग्राम/100 लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और फिर 15 दिन के अन्तर पर इंडोफिल एम-45 से दो छिड़काव करें। |
फल मक्खी एवं डाऊनी मिल्डयु काएकीकृत प्रबन्ध्न |
उपरोक्त छिड़काव प्रणाली के सभी छिड़कावों के साथ मैलाथियान 50 ई. सी. (मैलाथियान 200 मि. ली. पानी) $गुड़ (1 कि. ग्रा./100 लीटर पानी) को मिलाकर छिड़काव करें। |
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