गाजर
गाजर भी मुख्य जड़ वाली सब्जियों में से एक है। इसकी खेती ठण्डे और सामान्य शीतोष्ण मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। इसकी जड़ों को कच्चे सलाद के तौर पर या पका कर सब्जी के रूप में खाया जाता है। इससे आचार, मिठाईयां एंव कांजी भी बनाया जाता है। गाजर में केरोटीन अध्कि मात्रा में पाया जाता है। गाजर की खेती गृह वाटिका से लेकर व्यापारिक स्तर पर प्रदेश में की जाती है। इसकी भी किस्में दो प्रकार की होती हैं । यूरोपियन व एशियाटिक काँजी के लिए काली किस्में अच्छी मानी जाती हैं ।
उन्नत किस्में:
अर्ली नैन्टीन: जड़ें बेलनाकार, छोटे शिखर के साथ, गुदा नांरगी, 110 दिन में तैयार हो जाती है। औसत पैदावार 150-190 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर।
चान्टैनी: नुकीली परन्तु अग्र भाग एकदम बन्द, नांरगी, 110-130 दिन में तैयार हो जाती है। औसत पैदावार 200-225 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।
पूसा यमदागनी: लम्बी जड़ें कम नुकीली, शिखर मध्यम, नारंगी रंग, 80-120 दिन में तैयार हो जाती है। औसत पैदावार 190-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।
यूरोपियन:
यूरोपियन गाजर- इस किस्म में जड़ें आकर्षक बेलनाकार, मध्यम लम्बाई (18-20 सैं. मी.)नरम और नारंगी रंग लिऐ हुए, शिखर मध्यम रहती है इस किस्म में केरोटिन की अध्कि मात्रा पाई जाती है तथा 100-110 दिनों में तैयार होने वाली किस्म है । इसकी औसत पैदावार 225-275 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जो कि अर्ली नैन्टिस से अध्कि है।
एशियाटिक:
पूसा केसर: जड़ें लम्बी, नाँरगी रंग नुकीली तथा 80-100 दिनों में तैयार की जाती है औसत पैदावार 200-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।
सस्य क्रियाएं
2-3 जुताईयां देसी हल से करके मिट्टी को भुरभुरी करके सिंचाई की सुविध की दृष्टि से नालियां बनाते हुए खेत को छोटी-2 क्यारियों में बांट लेना चाहिए।
|
बीजाई का समय:
|
निचले क्षेत्रा |
अगस्त-सितम्बर |
मध्य क्षेत्र |
जुलाई-सितम्बर |
ऊंचे क्षेत्र |
मार्च-जुलाई |
|
निवेश सामग्री :
|
बीज मात्रा (किलो ग्राम) |
6.25 |
0.50 |
0.25 |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
100 |
8 |
4 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
250 |
20 |
10 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
60 |
5 |
2.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
125 |
10 |
5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
25 |
2 |
1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
75 |
6 |
3 |
|
सस्य क्रियाएं:
हल चलाने से पहले खेत में गोबर की खाद, डालकर अच्छी तरह से तैयार कर लें ।
विधि1: गोबर की खाद, सुपर फास्फेट और म्यूरेट आॅफ पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करने समय डालें। यूरिया की आधी मात्रा बुआई पर तथा शेष आधी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें।
विधि2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया की आध्ी मात्रा बुआई पर तथा शेष आध्ी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें।
बीजाई एवं दूरी:
गाजर का बीज 30 सैं. मी. दूरी पर बनी मेढ़ों पर 2-3 सैं. मी. की गहराई में बीज कर मिट्टी से ढक दिया जाना चाहिए । अकुंरण के बाद पौधें को 8-10 सैं. मी. की दूरी पर रखकर फालतू पौधें को निकाल दिया जाता है।
सिंचाई व निराई-गुड़ाई:
खेत में नमी के अनुसार परन्तु सूखे मौसम मंे 15 दिनों के अन्तर से सिंचाई करनी आवश्यक है। खरपतवारों से फसल की सुरक्षा के लिए दो तीन बार निराई गुड़ाई करना और पौधें को उर्वरक देने के बाद मिट्टी चढ़ाना लाभदायक होता है।
जड़ो का उखाड़ना:
जब जड़ें तैयार हो जायें तो उखाड़ कर निकाल लें तथा साफ करके बाजार भेज दें।
उपज (क्ंिवटल)
|
प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
200-250 |
16-20 |
8-10 |
|
बीजोत्पादन:
यूरोपियन: इन किस्मों का बीज ऊंचे क्षेत्रों मे पैदा होता है जहाँ जड़ों को (कम तापमान )सामान्यतः 4-7 डि. ग्री. से. तापमान 6-8 सप्ताह तक मिल जाता है। शुष्क व आर्द्र शीतोष्ण पर्वतीय क्षेत्रा बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त हंै एशियाई प्रजातियों का बीज मध्य एवं मैदानी क्षेत्रों में आसानी से पैदा किया जा सकता है।
गाजर बीज उत्पादन की दृष्टि से द्विवर्षीय लम्बी अवधि की फसल है। बीज उत्पादन के लिए वही सस्य क्रि यायें करते हैं जो जड़ उत्पादन के लिए की जाती है। जड़ों का चयन करना अति आवश्यक है तथा बीज भी प्रमाणित ही होना चाहिए तथा प्रमाणीकरण संस्था द्वारा बीज फसल का निरीक्षण किया गया होना चाहिए। इस फसल में मुख्यतः मधु-मक्खियों तथा अन्य कीटों द्वारा पर परागण होता हैं । साथ ही भिन्न-2 किस्मों से बचाने और शुद्वता को बनाये रखनें के लिए गाजर सम्बध्न्ति अन्य किस्में से पृथकीकरण दूरी आधर बीज के लिए 1000 मीटर तथा प्रमाणित बीज के लिए 800 मीटर होनी चाहिए। एक हैक्टेयर से प्राप्त जड़े 5-6 हैक्टेयर में बीज उत्पादन कें लिये उपयुक्त है ।
|
निवेश सामग्री :
|
|
प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
100 |
8 |
4 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
250 |
20 |
10 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
60 |
5 |
2.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
125 |
10 |
5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
25 |
2 |
1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
75 |
6 |
3 |
|
विधि1: गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय डालें लें। सुपर फास्फेट व पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया की आध्ी मात्रा जड़ें लगाते समय खेतों में मिला लें। शेष यूरिया खाद एक महीने बाद गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें।
विधि2: गोबर की खाद , 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें ।
कटाई:
बीज जब पक जाये तथा पौधें का रंग पीला होने लगे तो काट कर सुखाने के बाद बीज को अलग कर लेना चाहिए । छंटाई आदि के बाद बौराबन्दी करके वायुरोध्ी गोदामों में भण्डारित करना चाहिए।
बीज उपज:
|
प्रति हेक्टर |
प्रतिबीघा |
प्रतिकनाल |
4.0-5.0 |
36-40 |
18-20 |
|
पोध संरक्षण |
लक्षण
|
उपचार
|
बीमारिया
|
|
आल्टरनेरिया ब्लाइट: यह मूली और शलजम की बीज फसल की खतरनाक बीमारी है। पत्तों, टहनियों तथा फलियों पर गहरे भूरे ध्ब्बे चक्कर बनाते हूए उभर आते हैं।
|
1. बीज का उपचार थीरम-75 (3 ग्राम प्रति किलो बीज) से करें।
2. पौधें पर 8-10 दिन के अन्तर पर काॅपर आक्सीक्लोराइड या ब्लाइटाॅक्स-50 (300 ग्राम प्रति 100 ली. पानी)या इंडोफिल का छिड़काव करें।
3. रोगमुक्त बीज प्रयोग करें। |
सफेद रत्तुआ : विभिन्न आकार के विखरे हुए ध्ब्बे पत्तों, तनों तथा फूल वाली टहनियों पर पाये जाते है। जो बाद में आकार में फैल जाते हैं । |
1. बीज का उपचार बैविस्टीन (3 ग्राम प्रति किलो बीज) से करें।
2. स्वस्थ पौधें से बीज लें।
3. ब्लाईटाॅक्स 50 (300 ग्रा. प्रति 100 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें।
|
सरकोसपोरा ब्लाइटः पत्तों पर विभिन्न प्रकार के लम्बूतरे ध्ब्बे उभर जाते है। किनारों से पत्ते मुड़ भी जाते हैं। गाजर की फसल पर काफी प्रभाव होता है ।
|
उपरोक्त
|
चूर्ण रोग : पौधें के सभी भागों पर सफेद हल्के रंग का चूर्ण आ जाता है।
|
चूर्ण के लक्षण आने से पहले ही कैराथेन (50 मि. ली. प्रति 100 लीटर पानी) या वैटेबल सल्फर (200 ग्रा.प्रति 100 लीटर पानी) का छिड़काव 10 से 25 दिन के अन्तर पर लक्षण आने से पूर्व करें । |
मोजैक रोग: पौधे तथा पत्ते हरे रंग के बिना मटमैले व ध्ब्बे वाले तथा मोटी हरी धरियों वाले हो जाते हैं तथा मुड़ने लगते है। रोगी पत्ते मोटे और गुच्छेदार हो जाते है। पौधें की बढ़ौतरी रूक जाती है, फूल गिर जाते हैं और फल विकृत आकार के हो जाते है।
|
1. रोग प्रतिरोधी किस्में लगायें।
2. रोग के संक्रमण को रोकने के लिए चारों तरफ ऊंचाई लेने वाली फसल लगायें
3. मैलाथियान 0.1%(100 मि. ली. प्रति 100 लीटर पानी) में घोलकर 2-3 बार छिड़काव करें ।
|
कीट
|
|
तेला: यह पत्ते और फूलों से रस चूसता है, पौधे अस्वस्थ लगते है और उनके पत्ते मुड़ जाते है
|
1. जड़ वाली फसल पर मैलाथियान (0.1%) का 15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।
2. बीज वाली फसल पर 0.% मैटासिस्टाॅक्स 25 ई. सी. (100 मि. ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें । |
मस्टर्ड साफ्रलाई : यह पत्तों और फूलों को खाते हैं और बीज को नुकसान पहुँचाते है। |
बीजाई से पहले खेत में 2 लीटर क्लोरपाईरिफास 20 ईसी को 25 कि. ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर मिलायें ताकि जमीन में लगने वाली सारे कीड़े मर जायें।
|
कैरेट रस्ट फ्रलाई: लाखा जड़ों पर पलता है और नुकसान पहुंचाता है
|
उपरोक्त |
|