घीया (लौकी)
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घीया निचले क्षेत्रों तथा मध्य क्षेत्रों में नकदी फसल के रूप मे उगाया जाता है। स्वाँ के आस-पास (नदियों एवं खड्डों के किनारे) जहां पाला कम पड़ता है, इसे चप्पन कद्दू की तरह उगाया जाता है। |
किस्में: |
आकार के अनुसार घीया की गोल व लम्बी दो प्रमुख किस्में होती है। निचले क्षेत्रा में अध्कितर किसान गोल किस्मों पूसा समर प्रालीफिक राऊण्ड, पूसा मंजरी (संकर और पंजाब राऊड) को प्राथमिकता देते हैं । लम्बी किस्मों मे पूसा समर प्रालीफिक लोंग तथा पूसा मेघदूत (संकर) उचित पाई गई हैं। |
निवेश सामग्री : |
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज ( किलो ग्राम) |
5 |
400ग्राम |
200ग्राम |
खाद एवं उर्वरक |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
200 |
16 |
8 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
300 |
24 |
12 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
90 |
7 |
3.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
157 |
12.5 |
6.3 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
58.8 |
4.7 |
2.4 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
175 |
14 |
7 |
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बिजाई
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निचले क्षेत्र : |
फरवरी- मार्च,(सिंचित क्षेत्र)
जून (असिंचित क्षेत्र) |
मध्य क्षेत्र : |
मार्च -अप्रैल |
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कतारों में 1.5 से 2.0 मीटर की दूरी पर तथा पौधें में 60 सैं. मी. की दूरी पर 3-4 बीज बोएं और बाद मे एक या दो स्वस्थ पौधे ही रखें। |
सस्य क्रि याएं: करेले की फसल की तरह |
तुड़ाई व उपज: मौसम एवं प्रजाति के अनुसार बीजाई के लगभग 60-100 दिनों के बाद फल तुड़ाई योग्य हो जाते है। फलों को ऐसी अवस्था में तोड़े जब बीज बनना आरम्भ ही हुआ हो। |