लक्षण
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उपचार
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बीमारिया
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पौधे कमर तोड़: पौधे बीज से निकलते ही या बाद में मर जाती है तथा भूमि पर गिर जाती है। |
1-2 जैसी टमाटर में
3. हमेशा ग र्म पानी व स्ट्रैप्टोसाईक्लिन से उपचारित बीज पौध्शाला में लगायें।
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ब्लैक राॅट : पत्ते के संक्रामित स्थानों की पत्तियां पीली हो जाती हैं तथा ‘वी’ आकार के बिना हरे रंग के नीचे से ऊपर की ओर बढ़ जाती हैं। पौधे के पत्ते की मुख्य तथा अन्य शिरायें गहरे रंग की हो जाती है। प्रभावित फूल भूरे से काले पड़ने लगते है और सड़ जाते है। |
बीज को 30 मिन्ट तक पानी में रखें और बाद में (50 सेल्सियस तापमान)पानी में रखें । इतने ही समय तक स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (1 ग्राम/10 लीटर पानी) मिश्रण में रखें । फूल बनने पर 15 दिन के अन्तराल पर स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (1 ग्राम/10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।
नोट: बीज का उपचार सब्ज़ी उत्पादक/ किसान विश्व विद्यालय/ क्षेत्रीय अनुसन्धन प्रयोगशलाओं से बिना किसी खर्च के करवा सकते हैं।
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कर्डराट (फूल सड़न) : फूल का सड़ना कहीं से भी शुरू हो सकता है। सामान्यतः फूल घाव से ही सड़ने लगते है। |
1. पाला पड़ने से पूर्व सुरक्षात्मक छिड़काव मैनकोजैब या इंडोफिल एम-45 (25 ग्रा .म / 1 0 लीटर पानी) और स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (1 ग्राम/10 लीटर पानी) के घोल का फूलों पर छिड़काव करें। इस छिड़काव को दो बार 8-10 दिनों के अन्तराल पर भी करें।
2. फूल के ग्रसित भागों को चाकू से अलग कर दें तथा वहां बोर्डो मिश्रण (80 ग्राम नीला थोथा, 80 ग्राम चूना और 10 लीटर पानी) अथवा काॅपर आसीक्लोराईट या ब्लाईटॅक्स 50 (30 ग्राम/10 लीटर पानी) का लेप लगा दें।
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स्टाक राट: पत्तों की चमक समाप्त हो जाती है तथा गिर जाते हैं। तने अन्दर से सड़ कर खोखले तथा काले हो जाते है। फूल वाले कल्लों पर पनीले ध्ब्बे प्रकट होते है। जो चांदी जैसे हो जाते है। और मुरझा जाते है अतः फलियां नहीं बनती। |
1. फूलगोभी-धन का फसल चक्र अपनायंे।
2. रोगी पत्तों को नष्ट कर दें।
3. फसल पर फूल बनने से बीज बनने तक 10-15 दिन के अन्तराल पर बैविस्टीन (5 ग्राम/10 लीटर पानी) और मैनकोजैब या इंडोफिल एम-45 (25 ग्राम/10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें।
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डाऊनी मिल्डयू: इससे फूल सड़ जाते है। गला-सड़ा भाग भूरा तथा किनारे काले हो जाते है। पत्तों पर भी विशेष प्रकार के ध्ब्बे पड़ जाते है। |
फसल पर रिडोमिल एम जैड(25 ग्राम प्रति 10 लीटर प्रति पानी) या मैनकाजैब या इंडोफिल एम-45 (25 ग्राम/10 लीटर पानी) का छिड़काव रोग प्रकट होते ही तथा बाद में 10-15 दिन के अन्तराल पर भी करते रहें।
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मृदशेमित्रा रोग : रोग से पत्तों पर ध्ंध्ले हरे से पीले-भूरे काले ध्ब्बे पड़ जाते है। |
पौध्शाला की क्यारियों में रिडोमिल एम जैड (25 ग्राम/10 लीटर पानी) का छिड़काव करें। |
एकीकृत छिड़काव सारणी- |
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फूलगोभी वर्गीय फसलों के लिए |
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क) बुआई के पूर्व |
. क्यारियों को बुआई के 20 दिन पूर्व फार्मलीन (1 भाग फार्मलीन और 7 भाग पानी) द्वारा शोध्ति करें। 2. बीज को 30 मिनट तक पानी में भिगोने के बाद 30 मिनट तक गर्म पानी (52 डि॰ सेल्सियस)में भिगो लें तथा पुनः 30 मिनट तक स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (1 ग्रा./10 लीटर पानी) घोल में रखें। |
ख ) अंकुरण के बाद |
कमर तोड़ और जड़ गलन होने पर क्यारियों को मैनकोजब या इंडोफिल एम-45 (25 ग्राम/10 लीटर पानी) और कार्बण्ड़ाजिम या बैविस्टीन (5ग्राम/10 लीटर पानी) के घोल से सींचे। |
ग) रोपण उपरान्त |
मिट्टी चढ़ाने के एक सप्ताह बाद फसल पर कार्वेण्डाजिम या बैवस्टिीन-50 (5 ग्राम/10 लीटर पानी) का छिड़काव करें। पुनः 15 दिन बाद ऐसा ही और छिड़काव करें।
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घ) फूल बनने शुरू होने पर |
1. मैनकोजैब या इंडोफिल एम-45 (25 ग्रा / 1 0 लीटर पानी) अ ा ैर स्ट्रैप्टोसाईक्लिन (1 ग्राम/10 लीटर पानी) का सुरक्षात्मक छिड़काव करें तथा एक और छिड़काव 8-10 दिन बाद करें। 2. रोगी पत्तों को नष्ट कर दें।
3. छोटे रोगी भागों को चाकू से काट दें तथा वहां बोर्डो मिश्रण (;80 ग्रा. नीला थोथा, 80 ग्रा. चूना और 10 लीटर पानी) अथवा कापर आक्सीक्लोराईड या ब्लाईटाक्स-50 (30ग्रा./10 लीटर पानी) का लेप लगा दें।
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ड) फूल बनने से फली बनने तक |
फसल पर 5 ग्राम कार्बेण्डाजिम या बैविस्टीन-50 और 25 ग्राम मैनकोजैव या इंडोफिल एम-45 को 10 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़के।
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कीटः
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गोभी का तेला: दिसम्बर से मार्च में पत्तों की निचली सतह पर हरे रंग के छोटे कीट जिस पर राख जैसा चूर्ण होता है, प्रकट होते हैं। पौध्े अस्वस्थ लगते हैं तथा इनके पत्तें मुड़ जाते हैं। फूल गोभी की बीज वाली फसल मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मध्य फरवरी से जून तक इन कीटों से प्रभावित रहती है। तेला पत्तों तथा फूलों से रस चूसता है, अतः बीज कम बनता हैं। |
1. फूल वाली फसल पर मैलाथियान (750 मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी. प्रति 750 लीटर पानी) का छिड़काव प्रति हैक्टेयर करें। इस छिड़काव को हर 15 दिन बाद करते रहें। फूल तोड़ने के सात दिन पहले फसल पर छिड़काव न करें। 2. बीज वाली फसल पोधो के किनारे पर मिटटी मे फारे टे (15 कि. ग्राम . थीमटे या फारे टे 10 जी प्रत्ति हेक्टेयर) के दाने मिलाये या फसल पर मिथाइर्ल डैि मटान (750 मि. ली. मटैासिस्टाक्स 25 इ. सी.) या फास्फामिडान (250 मि. ली. डाइर्म क्रेान 100) को 750 मि. ली. डाइर्म क्रेान 100) को 750 ली. पानी घोलकर तेले के फूल पर आने पर प्रत्ति हेक्टेयर छिडक़ाव करे यदि आवश्यकता हो तो पनु : छिडक़ाव करे|
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कैटरपिल्लर: बन्दगोभी का कैटर पिल्लर, सेमी लूपर, डायमंड बैक पाथ, फलछेदक व सुंडियां मध्य फरवरी से पत्तियां खाकर हानि पहुँचाते है। उन्दगोभी काकैटरपिल्लर शुरू में बहुत हानि करता है। फलछेदक कीट फूल निकलने और फली बनने पर आक्र मण करता है। |
1. सफेद भृगों की सुंडियों व पीले अण्डो को चुन कर नष्ट कर दें। 2. 750 मि. ली. मैलाथियान 50 ई. सी. या 375 मि. ली. न्यूवान 100 को 750 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। बीज वाली फसल पर कैटरपिल्लर प्रकट होने पर 1 लीटर थायोडान/हिलडान/एण्डोसिल 35 ई. सी. का 750 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें या 350 मि. ली. सुमीसिडीन/एग्रोफेन 20 ई. सी. या 225 मि. ली. साईम्बुश 25 ई. सी. या 750 मि. ली. डैसिज 2.8 को 750 ली. पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़के।
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पेंटिड बग: शिशु एवम् प्रौढ पौधें के पत्तों और फलियों मंे रस चूसते है जिससे बीज सिकुड़ जाता है और उपज में कमी आती है। |
मोनोक्रोटोफास (375 मि. ली. न्यूवाक्रान 40 ईसी) या 750 मि. ली. मैटासिस्टाक्स 25 ईसी को 750 ली. पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़के ।
सावधनी 1.
बीज वाली फसल में अवांछनीय पौधें को छिड़काव से पहले ही उखाड़ दें।
2. फूल आने पर छिड़काव शाम के समय करें तथा समीप में स्थित मौनगृह के द्वार दूसरे दिन बन्द रखें। |
लाल चींटी : कई स्थानों पर लाल चींटियों का आक्रमण पाया गया है। नव-रोपित पौधें की रोयेदार जड़ों और छाल पर कीड़े पलते है और प्रभावित पौधे सूख कर मर जाते है। |
रोपाई के समय 2 ली. क्लोरपाईरिफास 20 ई. सी. को 25 कि. ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से खेतों में डालें। |
दैहिक विकार:
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फूलगोभी: |
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बटनिंग तथा राईसीनेस: अध्कि आयु की पौध् व नत्राजन चूना सुहागा तथा मैलिबिडनम की कमी के कारण फूलगोभी बटन के समान रह जाती है। |
1. अपने परिपक्कता के वर्ग वाली किस्में लगायें।
2. नत्राजन, फास्फोरस, चूना और सुहागे की अनुमोदित मात्रा का प्रयोग करें।
3. शुद्व बीज का प्रयोग करें।
4. फसल को ठीक समय पर बीजें तथा तुड़ाई करें।
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भूरी व लाल सड़न: सुहागा की कमी के कारण फूलगोभी पर पनीले स्थान बन जाते हैं। फूलगोभी की सतह पर गुलाबी या लाल-भूरा रंग आ जाता है तथा उसका स्वाद कड़वा हो जाता है |
बोरेक्स या सोडियम बोरेट को 20 कि. ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं। अध्कि अभाव की स्थिति में 0.25-0. 5% बोरेक्स के घोल का छिड़काव करें। |
व्हिप टेल: मौलिबिडनम के अभाव के कारण पत्ते हरे रंग के बिना सफेद हो जाते है व मुड़ कर सूख जाते हैं। पुराने पौधें के किनारे अनियमित आकार के हो जाते है और कभी-कभी पत्ते की केवल मुख्य धरी ही रह जाती है जिसके फलस्वरूप इसका व्हिप टेल नाम पड़ा । |
नत्राजन की अनुमोदित मात्रा डालें या 0.5% यूरिया और 0.1% अमोनियम मौलिबिडेट के घोल का छिड़काव करें। |
ब्लाईडनैस: पौधे बिना शिखर कली के होते हैं। पत्ते बड़े, मोटे व गहरे रंग के हो जाते हैं। बहुत ठण्ड पड़ने पर ऐसा होता है । |
शिखर कली को कीटों से तथा खेतों में कार्य करते समय पौधें को होने वाले नुकसान से बचाएं। |