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चिकोरी

चिकोरी एक नकदी फसल है जिस का बीज ऊंचे शुष्क पर्वतीय क्षेत्रों में सफलता से तैयार किया जाता है। इसकी जड़े भूनकर व पीस कर काफी के पाऊडर में मिलाई जाती है जिससे काफी का स्वाद अच्छा हो जाता है।

उन्नत किस्में:

के-1जड़े मोटी, लम्बी व नुकीली, गुदा सफेद रंग का होता है।
के-13: जड़ें गठी हुई तथा मोटी, उखाड़ते समय टूटती नहीं, गूदा सफेद रंग का होता है।

निवेश सामग्री:

  प्रति हैक्टैयर प्रति बीघा प्रति कनाल
बीज (कि. ग्रा.) 1.5 120ग्रा. 60ग्रा.
गोबर की खाद (क्विंटल ) 100 8 4
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 200 16 8
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 300 24 12
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 60 5 2.5
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 156 12.5 6.3
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 163 0.3 0.70
यूरिया ( किलो ग्राम) 175 14 7
नोट: खाद व उर्वरक डालने की विध् िचुकन्दर की तरह है।

बीजाई:

ठण्डे ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जड़ की फसल: मई-जून
  बीज की फसल: मार्च-अप्रैल

बीजोत्पादन:

चिकोरी की जड़ें (स्टैकिलग) अक्तूबर तक तैयार हो जाती हंै । उनको या तो खेत में रहने देते हैं या गढ़ों में चुकन्दर की तरह भण्डारित करते हैं व अवांछनीय जड़ों की छंटाई के पश्चात् ठीक जड़ों को मार्च में पुनः रोप दिया जाता है। बीज की फसल अगस्त-सितम्बर में पक कर तैयार हो जाती है।

अवाँछनीय पौधें का निकालना:

अच्छे बीज उत्पादन के लिए फसल पक कर तैयार होने तक इसका तीन बार कम से कम निरीक्षण करना आवश्यक है और अवांछनीय पौधें को निकाल दिया जाता है। पहले जड़ का चयन करते समय तथा रोपण के समय, दूसरा फूल आने पर और तीसरा पकने से लेकर कटाई तक ।

पृथकीकरण:

प्रमाणित बीज प्राप्त करने के लिए फसल को अन्य किस्मों से 800 मीटर तथा आधर बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर की दूरी पर लगाना आवश्यक है।

निवेषः

एक बीघा में तैयार जड़ें 5-6 बीघा खेत बीज की फसल के लिए पर्याप्त होती है। खाद व उर्वरक जड़ वाली फसल की तरह की डालें।

कटाईः

चिकोरी का बीज सभी शखाओं पर एक समय पर नहीं पकता। अतः बीज को झड़ने से बचाने के लिए बीज फसल को 3 या 4 बार काटना पड़ता है। अच्छी तरह से पकी हुई शाखाओं को निकाल कर बीज एकत्रा कर लेना चाहिए । इसे साफ करके तथा सुखा कर भण्डारित कर लें।

बीज:

प्रति हैक्टैयर प्रति बीघा प्रति कनाल
4.5-5क्विंटल 35-40 कि. ग्रा. 18-20 कि. ग्रा.
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Visitor No.: 08894594   Last Updated: 13 Jan 2016