प्याज
आमतौर पर यह फसल निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में सर्दियों में (दिसम्बर-जून) तक ली जाती है। हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में उगाए जाने वाले प्याज (मई-अक्तूबर) व निचले पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ प्याज की फसल प्रदेश के किसानों के लिए अध्कि लाभदायक है।
उन्नत किस्में:
पटना रेड: गाँठे गोल मध्यम आकार की, हल्के भूरे रंग तथा अच्छी टिकाऊ क्षमता। रोपाई के बाद 135-140 दिनों में तैयार। औसत उपज 200-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर। निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म ।
एन-53: गाँठे चमकीले लाल रंग की गोल होती है। एक गांठ का भार 70-100 गा्रम होता है। यह प्रजाति खरीफ प्याज की फसल के लिए उपयुक्त है। 150-165 दिनों मे तैयार । औसत पैदावार 150-180 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।
एग्रीफाउण्ड डार्क रेड : इसकी गाँठे गहरे लाल रंग के गोल आकार की होती है। छिलका कसा हुआ। रोपाई के बाद 150-160 दिनों मे तैयार । औसत उपज 200-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर, ऊंचे पर्वतीय एवं शुष्क शीतोष्ण क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त किस्म ।
ब्राऊॅन सपेनिश: गाँठे गोल व अण्डकार, लाल भूरा रंग तथा छाल मोटी, अच्छी टिकाऊ क्षमता । ऊंचे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म ।
पालम लोहित: इसकी गाठें आकर्षक गहरी लाल व गोल होती हैं । औसतन उपज 489 क्ंिवटल प्रति है॰ है । अध्कि उपज के कारण किसान के लिए यह अत्यन्त लाभदायक है । इसका टिकाऊ क्षमता पटना रेड के बराबर है ।
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निवेश सामग्री :
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बीज मात्रा (किलो ग्राम) |
8.10700-800 |
350-450 |
गा्.गोबर की |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
250 |
20 |
10 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
250 |
20 |
10 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
475 |
40 |
20 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
100 |
8 |
4 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
234 |
19 |
9.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
37.5 |
3 |
1.5 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
210 |
16 |
8 |
स्टाम्प |
3 |
240 मि.ली . |
100 मि.ली . |
लासो लीटर |
2 |
160 मि.ली . |
80 मि.ली . |
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बीजाई व रोपाई:
प्याज की पौध् नर्सरी में उगाई जाती है। जब पौध् 8-10 सप्ताह (6-8 ईच) की हो जाए तो इसकी रोपाई करनी चाहिए । बीजाई का उचित समय इस प्रकार है:
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निचले क्षेत्र: |
मध्य नवम्बर (मुख्य फसल) जून-जुलाई (खरीफ प्याज) |
मध्य क्षेत्र |
मध्य अक्तूबर से मध्य नवम्बर |
ऊंचे क्षेत्रा |
अप्रैल |
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पौध् रोपण:
पंक्ति से पंक्ति |
15 सैं. मी. |
पौधे से पौधे |
5-8 सैं. मी. |
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सस्य क्रियाये
विधि1: खेत को तैयार करते समय गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, म्यूरेट आॅफ पोटाश की पूरी एवं आधी यूरिया खाद मिट्टी में मिला दें तथा बची हुई यूरिया की आधी मात्रा को दो बराबर भागों में बाट कर रोपाई के एक-एक महीने के अन्तराल पर डालें।
विधि2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद, म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया खाद की आधी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों मे एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी इसके एक महीने के बाद डालें।
खरपतवार नाशक दवाई का छिड़काव रोपाई से एक या दो दिन पहले करें। निराई-गुड़ाई करते समय पौधें का ध्यान रखें तथा भूमि में नमी भी कम न होने दें।
हरे प्याज की उपज:
हरे प्याज की उपज सभी पर्वतीय क्षेत्रों में ली जा सकती है। लेकिन निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्र मे इसे सितम्बर से नवम्बर में बे मौसमी फसल के रूप में उगाया जाता है। इस प्याज की छोटी-2 गाँठे (सैट) नर्सरी में तैयार करके जुलाई-अगस्त मे मेढ़ों या ऊंची क्यारियों में लगाया जाता है।
सैट तैयार करने की विधि
बीज को नर्सरी क्यारियों में बीजा जाता है। इसके बाद पौधें को नर्सरी में ही रहने दिया जाता है। मई-जून के महीने में प्याज की छोटी-2 गांठे तैयार हो जाती है। इन गांठो का प्रयोग जुलाई-अगस्त मंे हरा प्याज उगाने के लिए किया जाता है। जब नर्सरी
एक महीने की हो जाए तो 100-150 ग्राम यूरिया 10 लीटर पानी में घोलकर दो सप्ताह के अन्तराल पर छिड़काव करते रहें । यह विधि अपनाने से किसान बेमौसमी हरा प्याज उगाकर अच्छी आय ले सकते है ।
गांठो की खुदाई व उपज:
प्याज की हरी पत्तियां सूखने से पहले या जब 25-50 प्रतिशत पत्ते गिर जाएं, इसकी गांठ को निकाल लेना चाहिए। गांठो को निकालने के बाद 2-3 दिन तक छाया में सुखाना चाहिए । इसके प्याज की टिकाऊ क्षमता बढ़ती है। (अध्कि पैदावार व उच्च लवणता के लिए प्याज की पत्तियां को हाथ से गिराने की सिफारिश की जाती है) प्याज को सुखाने के बाद इसको खुली हवा वाली शुष्क जगह में भण्डारण करने के लिए इसे 4-6 महीने तक रखा जाता है।
खरीफ प्याज़ उत्पादन
उन्नत किस्में: बसवन्त 780, एग्रीफउण्ड डारक रेड व एन 53
सेट तैयार करने की विधि बीज को नर्सरी क्यारियों में 15 फरवरी से एक मार्च की अवधि में बीजा जाता है। क्यारियों में बीज घनत्व 10 ग्राम/मी. तथा 20 कि. ग्रा. प्रति हैक्टेयर के दर से बीज की बिजाई की जाती है । इसके बाद पौधें की नर्सरी में ही छोटी-2 गांठे तैयार हो जाती है । खरीफ प्याज की पैदावार करने के लिए एैसी 18 से 20 क्ंिवटल प्रति है॰ गांठो की आवश्यकता पड़ती है और गांठो को 10-15 सैं. मी. के फासले पर रोपाई कर दी जाती है ।
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बीजोत्पादन:
प्याज को बीजोत्पादन के लिए फसल की अपेक्षा अध्कि मात्रा में बीज बोए जाते है ताकि प्याज छोटे-2 रहे क्याकि छोटी गांठो में भण्डारण क्षमता अध्कि होती है। गर्म जलवायु में निचले क्षेत्रा, 1000 मी. तक प्याज के कन्द सितम्बर अक्टूबर में 45*45 सैं. मी. की दूरी पर लगाए जाते है । आधर बीज व प्रमाणित बीज प्राप्त करने हेतू अन्य किस्मों को कमशः 1000 मीटर व 800 मीटर की दूरी पर रखें शेष सस्य क्रियाएं मुख्य फसल की भान्ति ही है ।
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निवेश सामग्री :
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प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
150 |
12 |
6 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
312 |
25 |
12.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
85 |
7 |
3.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
156 |
12.5 |
6.3 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
41 |
3.3 |
1.7 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
12.25 |
10 |
5 |
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विधि1: गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय डालें । सुपर फास्फेट व पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया की आध्ी मात्रा प्याज के कन्द लगाते समय खेतों में मिला लें। शेष यूरिया खाद एक महीने बाद गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें ।
विधि2: गोबर की खाद , 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें ।
सभी पुष्प वृत एक साथ तैयार नहीं होते। इन्हें 2-3 बार थोड़े-2 समय के अन्तर पर 4-5 सैं. मी. डण्डी के साथ काटें तथा अच्छी हवा व छायादार स्थान पर फैला कर रखें। जब पुष्प गुच्छे पूरी तरह पक जाये तब इनकी गहाई व सफाई करनी चाहिए। प्याज के बीज का अँकुरण आयु कम होने के कारण इसे नमी रहित बन्द डिब्बों या प्लास्टिक लिफाफों में 2-3 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलो की दर से उपचारित करके रखें।
बीज उपज
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प्रति हेक्टर (क्विंटल ) |
प्रतिबीघा ( किलो ग्राम ) |
प्रतिकनाल( किलो ग्राम ) |
8-10 |
65-80 |
32-40 |
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पोध संरक्षण
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लक्षण
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उपचार
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बीमारिया
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पौध् का कमर तोड़ रोग : बीज से पौध बनते समय तने के गल जाने से पोधा मर जाता है।
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टमाटर की तरह |
जामुनी ध्ब्बा रोग : फूल वाली डंडियों पर जामनी रंग के ध्ब्बे पड़ जाते है और वहीं से यह डण्डियाँ टूट कर गिर जाती है।
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बुआई से पहले कन्दों को मैनकोजेब या इंडोफिल एम-45 ;25 ग्रा./10 ली. पानीद्ध में डुबोएं । रोग के प्रकोप के साथ ही उपरोक्त घोल हर 15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें। |
स्टेमफाईलम लीफ स्पाट : जामनी हरे रंग के लम्बे चकते ध्ब्बे प्याज वलहसुन के पत्तों व तनों पर पड़ जाते है। बाद में पत्तें झुलसने आरम्भ हो जाते है। |
रोग के प्रकट होते ही मेनकोजेब और (कार्बनडेजीम 500 ग्रा.) का छिड़काव करें। इसके पश्चात डाइफेनकोनेजोल ;30 मि. ली.द्ध या टेबकोनेजोल अकेले या मेनकोजोल (500 ग्रा.) के साथा मिक्षण कर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। पहला छिड़काव बिमारी के लक्षण आते है। छिड़काव से पूर्व स्टीकर भी उपयोग में लायें । थ्रीपस के नियंत्राण में रखने के लिये मैलाथियान का छिड़काव भी बिमारी से बचाव के लिये आवश्यक है। |
डाउनी मिल्डयू : प्रभावित भागों पर चकते पड़ जाते हैं । |
जैसे ही यह कीट नजर आएं, मैलाथियान(375 मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी.) या कार्वेरिल ;1.5 कि. ग्रा. सेविन 50 डब्ल्यू पीद्ध या फेनीट्रोथियान (750 मि. ली. फोलीथियान/सुमिथियान एकोथियान 50 इ सी.) को 750 ली. पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
थ्रीप्स: फरवरी से मई तक प्याज की फसल को बहुत हाानि पहुचाते है। पत्तों पर सफेद ध्ब्बे पड़ते है जो सूख जाते हैं । |
उपरोक्त जामुनी ध्ब्बा रोग की तरह |
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