फ्रांसबीन
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फ्रॉसबीन प्रदेश के हर क्षेत्रों में नगदी एवं बेमौसमी सब्जी व बीज के लिए उगाई जाती है। निचले क्षेत्रों में इसकी खेती बसन्त-ग्रीष्म व पतझड़-शीत ऋतू में की जाती है। जबकि मध्य तथा ऊंचे क्षेत्रो में इसकी बीजाई मार्च से जून तक की जाती है। प्रदेश में इसके अन्तर्गत लगभग 2037 हैक्टेयर क्षेत्र है जिसमें प्रतिवर्ष 19200 टन सब्जी उत्पादन होता है।
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उन्नत किस्में :
इसकी दो किस्में झाड़ीदार या बौनी तथा बेलनुमा या ऊंची प्रचलित है। बौनी या झाड़ीदार किस्में कम समय में जल्दी पकने वाली तथा बिना किसी सहारे से उगाई जाती है। ऊंची किस्में मध्य तथा ऊंचे क्षेत्रों में आसानी से उगाई जाती हैं तथा इन्हें उगाने के लिए सहारे उन्नत (झांबे इत्यादिद्ध )की आवश्यकता होती हैं।
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(अ) बौनी या झाड़ीदार किस्में:
कंटैडर : इसकी फलियां गहरे हरे रंग की, रेश रहित तथा नीचे से मुड़ी होती है। औसत उपज 75-100 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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पूसा पार्वती : फलियां हरे रंग की, रेशे वाली, चपटी तथा सीधी होती है। औसत उपज 100-125 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर। |
वी एल बौनी-1 : फलियां हरे रंग की, रेशा रहित, मोटी तथा नीचे से थोड़ी सी मुड़ी हुई होती है। औसत उपज 90-100 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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प्रीमियर : फलियां गहरे रंग की, रेश रहित तथा सीधी होती है। औसत उपज 75-100 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर। |
अर्का कोमल: यह नई किस्म है व इसकी फलियां रेश रहित होती है। यह एन्थ्रेक्नोज़ बीमारी के लिए भी प्रतिरोधी है।
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(ब) बेलनुमा या ऊंची किस्में :
एस. वी. एम.-1 : फलियां गहरे रंग की, गोल सीधी एवं कुछ रेशेदार होती है। यह ऐन्गुलर लीफ स्पाट प्रतिरोधी किस्म है। औसत उपज 100-125 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर|
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लक्ष्मी (पी-37) : फलियां आकर्षक हरे रंग की, 3 फलियां प्रति गुच्छा, चपटी-गोल तथा रेश-रहित होती है। औसत उपज 160 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर।
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कैंचुकी वन्डर : फलियां लम्बी व गुदद्ेदार, मुड़ी हुई, 65 दिनों में तैयार होती है ।औसत उपज 100-125 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर । |
निवेश सामग्री :
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प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज(बोनी ) ( ग्राम किलो ) |
75 |
6 |
3 |
बीज(उची) ( ग्राम किलो ) |
30 |
2.5 |
12.5 |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
200 |
16 |
8 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
100 |
8 |
4 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
625 |
50 |
25 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
85 |
7 |
3.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
313 |
25 |
12.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
- |
- |
- |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
27.5 |
2.2 |
1.1 |
लासो लीटर |
3 |
240 मि.ली . |
120 मि.ली . |
स्टाम्प |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
या |
पैण्डिमिथिलिन (स्टाम्प) लीटर |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
या |
थायोबेनकार्ब (सैटरन) लीटर |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
या |
फ्रलुक्लोरालिन (बैसालिनद) लीटर |
2.5 |
200 मि.ली . |
100 मि.ली . |
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नोट : स्टाम्प या लासो का बीजाई के तुरन्त बाद ;24 से 48 घन्टे तकद्ध छिड़काव करें और छिड़काव के बाद दवाई की परत को मिट्टी से ना हिलाएँ । |
बीजाई : |
निचले क्षेत्र: |
मार्च-अप्रैल, जून (केवल ऊंची किस्में) |
मध्य क्षेत्र |
मार्च-अप्रैल, जून (केवल ऊंची किस्में) |
ऊचे क्षेत्र |
अप्रैल, जून |
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संस्य क्रियाऐ
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विधि -1:गोबर की गली -सडी खाद हल चलाने से पहले खेत में डाल दे |तथा दो दिन बार हल चला कर अच्छी तरह तेयार कर ले |यूरिया खाद, सुपरफास्फेट म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की सारी मात्रा बिजाई से पहले कतारो में डाले |
विधि -2:गोबर की खाद 12.32.16 मिश्रित खाद व् यूरिया खाद की साड़ी मात्रा खेत तेयार करते समय डाले |
बोनी किस्मो कतारों की दूरी 45 से.मी.तथा ऊची या बेलनुमा किस्मो में 90 से.मी.का अंतर रखे तथा बाद में पोधो में 12 15 से. मी. का अंतर रखे ऊची किस्मो की बिजाई मेंढ़े बनाकर त्तथा इन्हें उचित समय पर झांबोंया प्लास्टिक की सुतली आदि से सहारा दे लेकिन अधिक उपज लेने के लिए बेलनुमा या ऊची किस्मो को मक्की के साथ इस तरह से लगाये ताकि बेल मक्की के पोधे तक चढ़ सके | |
प्रदेश के सम शीतोषण क्षेत्रो में ऐसा पाया गया है की फ़्रांसबीन के कतारों के बीच में अगर बंदगोभी की फसल लगाई जाये तो पैदावार अधिक होती है | किसान अधिक आय पाने के लिए फ़्रांसबीन व् बंदगोभी को एक के बाद एक पंक्तियों में लगाकर अधिक आय प्राप्त कर सकते है| |
वार्षिक खरपतवारो की रोकथाम के लिए फसल उगने से पहले ऐलाकलोर(लासो ) 1 -5.ग्रा.(स .प .) थोयोबेनकार्ब(सेटरन) 2 कि.ग्रा. .(स .प .) या पैंडीमिथालिन(स्टाम्प )12 कि ग्रा.(स .प .) या फ्लूक्लोरालिन(बेसालिन)1 -3 .(स .प .) को 700 -800 ली.पानी में घोल कर प्रति हेक्टर छिडकाव करे यदि मोथा खरपतवार की समस्या हो तो लासो का छिडकाव करे | हाथ से खरपतवार निकालने पर फसल की अधिक बढ़होत्री होती है |
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जल प्रबंध फसल में 5 -7 दिन के अंतराल पर तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करना लाभदायक होता है फूल आने तथा फलियों के विकास के समय सिंचाई बहुत ही लाभदायक होती है | |
तुड़ाई तुड़ाई उस समय करे जब फलियों का आकर अच्छी तरह से बढ़ चूका तथा बीज अभी नर्म हो|अधिक आय के लिए फलियों को उनके हरेपन या चमक खोने से पहले ही तोड ले | बोनी किस्मे में 50 -60 दिनों में तथा बेलनुमा या ऊची किस्मे 65 -70 दिनों में तुड़ाई के लिए तेयार हो जाती है |
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उपज |
प्रति हेक्टर |
प्रतिबीघा |
प्रतिकनाल |
बोनी किस्मे कि्ंवटल |
75-100 |
6-8 |
3-4 |
ऊची किस्मे कि्ंवटल |
100-150 |
8-12 |
4-6 |
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बीज उत्पादन बीज उत्पादन सामान्य फसल की तरह ही है लेकिन मध्य तथा ऊंचे क्षेत्र इसके बीज उत्पादन के लिए अत्ति उपयुक्त है | दो किस्मो के बीच कम से कम 25 मी. का अंतर रखे ताकि बीज फसल की तुड़ाई के समय मिलावट ना हो | बीज फसल में अवांछनीय पोधो को फूल आने से पूर्व ,फूल आने पर तथा फल लगने के बाद (मंडीकरण योग्य अवस्था )खेत से निकाल देना चाहिए | बीमारी एवम विषाणु ग्रसित पोधो को फूल फसल से निकल देना चाहिए| जब अधिकाश फलिया पक कर पिली पड़ने लगे या सुख जाये तो पोधो को उखाड़ ले या सुखी फलिया तोड़ ले , 10 -15 दिन के बाद इन फलियों से बीज निकाले |इसे साफ़ करे और अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करे | |
बीज उपज |
प्रति हेक्टर |
प्रतिबीघा |
प्रतिकनाल |
बोनी किस्मे कि्ंवटल |
10-12 (कि्ंवटल) |
80-100कि.ग्रा. |
40-50 कि. ग्रा. |
ऊची किस्मे कि्ंवटल |
15-20कि्ंवटल |
120-160कि.ग्रा. |
60-80 कि. ग्रा. |
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पोध संरक्षण
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लक्षण
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उपचार
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बीमारिया
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ऐन्थ्रेक्नोज़ फलियों पर भूरे रंग के केंकर दिखाई देते है | |
1. सवस्थ बीज प्रयोग में लाये |
2. बीज का उपचार बेकिसटीन 50 डब्ल्यू पी (दो ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज ) से करे |
3. रोग से प्रभावित फसल पर आरम्भ से ही 8 -10 के अंतर पर बेकिसटीन 50 डब्ल्यू पी (5 ग्राम प्रति 10 ली . पानी )अथवा इणडोफिल एम.45 (25 ग्राम 10ली.)पानी का छिडकाव करे |
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राइजोकटोनिया वेब ब्लाईट भूमि के साथ तने पर विशेष किसम के लाल भूरे रंग के धसे हुए चिन्ह बनने लगते है | |
1.बीज का उपचार बेकिसटीन / मेवीस्टीन 50 डब्ल्यू पी (दो ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज ) से करे |
2. रोग के आने पर गर्म व् आर्द्र वातावरण में बेकिसटीन 50 डब्ल्यू पी (5 ग्राम प्रति 10 ली . पानी)पानी का छिडकाव करे |
3.खेत को साफ़ रखे और बहुफसली चक्र अपनाये |
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ऐन्गुलर लीफ सपाँटपत्तो कि निचली सतह पर लाल भूरे कोणदार धब्बे पड़ जाते है जिनके उपर काले रंग के कांटे कि तरह चिन्ह पाए जाते है | |
1. सवस्थ बीज ही बोये 2. बीज का उपचार बेकिसटीन 50 डब्ल्यू पी (दो ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज ) से करे 3.संक्रमित क्षेत्रो में 2 वर्षीय फसल चक्र अपनाये | 4.बिजाई के 35 दिनों के बाद 1.बीज का उपचार बेकिसटीन / मेवीस्टीन 50 डब्ल्यू पी (दो ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज ) से करे |)अथवा इणडोफिल एम.45 (25 ग्राम 10ली.)पानी का 15 दिन के अंतर पर छिडकाव करे | |
फलोरी लीफ सपाट पतो के निचली ओर आते जेसे सफ़ेद विशिष्ट धब्बे पड़ने लगते है | |
1.बुआई के लिए सवस्थ बीज ले 2.संक्रमित क्षेत्रो में 3 वर्षीय फसल चक्र अपनाये | |
प्यूसकास ब्लाईट पतों पर छोटे-छोटे पीले पारदर्शी धब्बे दिखते है पते पीले पड़ जाते है |और उन पर लाल धरिया व् चिन्ह भी आ जाते है |
1. रोगमुक्त बीज बोये |
2. उपचार के लिए बीज को 1ग्राम स्ट्रेपटोक्लीन 25 ग्राम हेक्साकेप के 10 ली. पानी के घोल में चार घंटे भिगोए
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सामान्य पत्ता मुड़ने रोग(कॉमन मोजक ) पते हरे पन के अभाव के बाद भीतर को मुड़ने लगते है शिराओ के आस -पास मुरझाना आता है | फलिया कम लगती है और उन में बीज भी कम बनते है |
1. पूसा पार्वती , केन्टकी वंडर तथा कन्टेडर रोग प्रतिरोधी किस्मे लगाए | 2. रोग वाहक कीट के नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ई.सी . 10 मि.ली./10ली. पानी के घोल का छिडकाव करे | |
कीट
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माईटस : पोधो के कोमल भागो से रस चूसते है | हरापन नष्ट होने पर पत्तो पर सफेद चकते बनने लगते है |पोधा सुख कर नष्ट हो जाता है |
इनका संक्रमण होते ही मैलाथियान (750 ली. साईथियान 50 ई. सी.) का छिड़काव करें। पुनः 10 दिन के अन्तर पर रसायन/छिड़के या डिकोफाल (1.250 ली. हैक्साकिल/कैलथेन/ हिलफोल 18.5 ईसी. को 750 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
ब्लिस्टर बीटल : ये कीट फूल और फलियां पर पलते है जिससे फलियां कम बनती हैं। |
फसल पर फैनवैलीरेट 0.01 प्रतिशत(375 मि. ली. सुमीसीडीन/फैनवल/एग्रोफेन 20 ई. सी.) या मोनाक्रोटोफास 0.02 प्रतिशत (375 मि. ली. न्यूवाक्रान 40 ई. सी.)या साईपरमिथ्रीन 0.0075 प्रतिशत (225 मि. ली साईमबुश 25 ई. सी./550 मिली. रिपकार्ड 10 ईसी) या डेल्टामैथ्रीन 0.0028 प्रतिशत (750 मि. ली. डैसिस 2.8 ई. सी.) प्रति 750 लीटर पानी घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
बीन बग: शिशु तथा प्रौढ़ पत्तों की निचली तरफ से रस चूसते हैं। अति प्रभावित भाग पीले पड़ जाते है और पत्ते गिर जाते |
फूल आने तथा फल बनने से पहले फसल पर मानाक्रोटोफास 0.002 प्रतिशत (750 मि.ली मोनोसिल/ मिलफास/ मोनोक्रोटोफास 36 एस. एल./ 50 मि. ली. न्यूवाक्रान 40 ई. सी.) या डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत (750 मि. ली. रोगर 30 ई. सी.) या मिथाइल डैमीटान 0.025 प्रतिशत (750 मि. ली. मैटासिसटाक्स25 ई. सी.) या फेनवैलीरेट 0.01 प्रतिशत (375 मि. ली. सुमिसीडीन/ फैनबल/ एग्रीफेन 20 ई. सी.) को750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
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एकीकृत छिड़काव सारणी
1. बुआई के लिए स्वस्थ बीज लें।
2. बुआई से पूर्व बीज को चार घण्टे के लिए 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन और 25 ग्राम हैक्साकैप के 10 लीटर पानी के घोल में भिगोयें।
3. संक्रामित क्षेत्रों में 8-10 दिन के अन्तराल पर बैविस्टीन 50 डब्लयू पी (5 ग्राम/10 लीटर पानी) अथवा इण्डोफिल एम-45 (25 ग्राम/10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।
4. सामान्य मोजैक रोग से बचाव के लिए कन्टेंडर और कैण्टुकी वंडर जैसी प्रतिरोधी किस्में लगायें।
5. सामान्य मोजैक की समस्या होने पर मैलाथियान 50 ई. सी.(10 मि. ली./10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।
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