बाकला (क्यूं)
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यह सब्जी बहुत ही छोटे पैमाने पर प्रदेश में उगाई जाती है। मुख्यतः बाकला की खेती काँगड़ा जिला में की जाती है। इसके अतिरिक्त चम्बा, मण्डी, हमीरपुर और बिलासपुर में भी इसकी खेती की जाती है। यह प्रोटीन का उतम स्त्रोत है। इसे दाल तथा अन्य कई पकवानों में प्रयोग किया जाता है। |
किस्में:
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किसानों के खेतों से इकट्ठा की गई बाकला की केवल दो ही किस्में जैसे छोटी फलियों वाली तथा लम्बी फलियों वाली अभी तक इस प्रदेश में उपलब्ध् है । |
निवेश सामग्री:
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प्रति हैक्टैयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
छोटे बीज वाली किस्में;(कि.ग्रा.) |
70 |
6 |
3 |
छोटे बड़े बीज वाली किस्में (कि. ग्रा.) |
100 |
8 |
4 |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
200 |
16 |
8 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
100 |
8 |
4 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
625 |
50 |
25 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
85 |
7 |
3.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
312.5 |
25 |
12.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
- |
- |
- |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
27.5 |
2.2 |
1.1 |
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बीजाई का समय:
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निचले क्षेत्र |
अक्तूबर-नवम्बर |
मध्य क्षेत्र |
सितम्बर-अक्तूबर |
ऊंचे क्षेत्र |
अप्रैल-जून |
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बाकला के बीज पंक्तियों में निम्नलिखित अन्तर पर लगाएं:
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छोटे बीज वाली किस्में |
45*10 सैं. मी. |
बड़े बीज वाली किस्में |
60*10 सैं. मी. |
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सस्य क्रि याएं:
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मटर की फसल की तरह ही करें। |
तुड़ाई व उपज:
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हरी फलियों की तुड़ाई खाने योग्य अवस्था में समय-समय पर कर लेनी चाहिए अन्यथा इनमें रेशा पैदा होने से इनकी गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। औसत उपज 100-150 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर । |
बीजोत्पादन
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यह एक परपरागित फसल है। इसलिए प्रमाणित बीजोत्पादन हेतु दो प्रजातियों के बीच 200 मीटर की दूरी रखनी चाहिए। औसत उपज 8-10 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर, (70-80 किलोग्राम प्रति बीघा अथवा 35-40 किलोग्रम प्रति कनाल) |