बैंगन
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बैंगन हिमाचल प्रदेश में निचले तथा मय क्षेत्रों की उपयुक्त फसल है। निचले क्षेत्रों में इस की खेती बसन्त-ग्रीष्म तथा बरसात-पतझड़ )तु में की जाती है जबकि मय क्षेत्रों में इसे अप्रैल से अक्तूबर तक उगाया जाता है। बरसात-पतझड़ )तु में किसान इस फसल से काफी लाभ कमाते हैं। इसके अन्तर्गत लगभग 252 हैक्टेयर भूमि है जिसमें प्रतिवर्ष 3960 टन बैंगन का उत्पादन होता है।
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उन्नत किस्में :
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1.अर्का निधि्: नई किस्म, जीवाणु मुरझान रोग ग्रसित क्षेत्रों (क्षेत्र-1 व क्षेत्र-2) के लिए उपयुक्त। हल्के नीले से काले 20-24 सै. मी. लम्बे फल, गूच्छे में लगे हुए । औसत उपज 300 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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2. एच-8 ;हिसार श्यामलद्ध : फल गोल, आकर्षक काले बैंगनी रंग के तथा मुलायम। जीवाणु मुरझान ग्रसित क्षेत्राों के लिए उपयुक्त किस्म। औसत उपज 250 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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3.अर्का केशव : नई किस्म, जीवाणु मुरझान रोग प्रतिरोध्ी, फल लम्बे गुच्छों में, लाल जामुनी चमकीली चमड़ी वाले, फल अर्का निधि् तथा पूसा परपल कलस्टर किस्मों से लम्बे, पहली तुड़ाई 65-70 दिनों में तथा औसतन उपज 160-200 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर।
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4. पूसा परपल कलस्टर : फल 10-12 सैं. मी. लम्बे, गहरे बैंगनी रंग तथा गुच्छों में ;4-9 फल प्रति गुच्छाद्ध । जीवाणु मुरझान ग्रसित क्षेत्रो के लिए उपयुक्त किस्म। औसत उपज 100-125 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर।
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6.पूसा परपल लौंग : फल 20-25 सैं. मी. लम्बे, हल्के बैंगनी रंग के, पतले छिलके वाले तथा मुलायम। जीवाणु ;बैक्टीरियल ग्रसित क्षेत्रो में न लगाएं। औसत उपज 250 कि्ंवटल प्रति हैक्टैयर ।
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8 .टी-3 : इसके फल गोल, 10-12 सैं. मी. लम्बे व हल्के बैंगनी रंग के जिन पर हल्का हरापन होता है और एक-एक लगते हैं । पोधे 50-60 सैं. मी. लम्बे होते हैं व फल 80-90 दिनों में तैयार हो जाते हैं व पैदावार 440 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर होती है। यह सब प्रतिरोधी हैं तथा परदेश निचले क्षेत्रो (क्षत्रे -1) के लिए अनुमोदित की गयी है
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निवेश सामग्री
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज ( ग्राम) |
500-600 |
40-50 |
20-25
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खाद एवं उर्वरक
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गोबर की खाद क्विंटल |
100 |
8 |
4 |
विधि -1
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यूरिया ( किलो ग्राम) |
220 |
17.6 |
8.8 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
375 |
30 |
15 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
85 |
6.8 |
3.4
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विधि- 2
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12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
188 |
15 |
7.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
33.2 |
2.7 |
1.3 |
यूरिया ( किलो ग्राम)
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168 |
13.4 |
6.8 |
लासो लीटर |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
स्टाम्प |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
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नोट : पैण्डिमिथिलिन (स्टाम्प) या एलाक्लोर (लासो) पोध रोपण से 24 से 48 घण्टे पहले डालें।
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बुआई एवम् रोपाई : बैंगन की, टमाटर की तरह, पहले नर्सरी (पनीरी) उगाई जाती है और बाद में पौधरोपण किया जाता है।
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क्षेत्र |
बुआई का समय |
पौधरोपण का समय |
निचले क्षेत्र |
अक्तूबर-नवम्बर |
फरवरी-मार्च |
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फरवरी-मार्च |
मार्च-अप्रैल |
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मार्च-अप्रैल |
जून-जूलाई |
मध्य क्षेत्र |
मार्च-मई |
अप्रैल-जून |
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सस्य क्रियाएं : गोबर की गली सड़ी खाद हल चलाने से पहले खेत मे डाल दें तथा 2-3 बार हल चलाकर खेत अच्छी तरह तैयार कर लें। 160 मि. ली. स्टाम्प या 160 मि. ली. लासो खरपतवारनाशक में से किसी एक को 30 लीटर ;दो कनस्तरद्ध पानी में घोल कर 24 से 48 घण्टे पहले छिड़काव करें। यह घोल एक कनाल के लिए पर्याप्त होगा।
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विधि्-1: यूरिया खाद की आध्ी मात्राा व सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश की सारी पौध् रोपण से पहले गड्डों ;कतारो में 60 सैं. मी. तथा पौधें में 45 सैं. मी.द्ध में डालें। पौध् रोपण से पहले रसायानिक खादों को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। शेष यूरिया खाद को दो बराबर भागों में एक-एक मास के अन्तराल पर डालें।
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विधि्-2 : गोबर की खाद, 12:32:16 मिश्रित खाद व मयूरेट ऑफ पोटाश की सारी मात्राा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूल आने के समय डालें।
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पौध् रोपण ग्रीष्म ऋतू में समतल खेतों में तथा बरसात-पतझड़ ऋतू में मेंढ़ो पर करें। पौधरोपण के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें या प्रत्येक पौध्े को फब्बारे से पानी दें। रसायनिक खरपतवार नियन्त्राण के अभाव में पौध्रोपण के लगभग 15-20 दिन बाद हल्की निराई गुड़ाई करें। ऐसी अवस्था में प्रत्येक सिंचाई के बाद हल्की गुड़ाई करना आवश्यक है ताकि भूमि को भुरभुरा एवं खरपतवार रहित रखा जाए। गर्मियों में पानी 5-7 दिन के अन्तराल पर तथा पतझड़ में 10-12 दिन के अन्तराल पर दें। वर्षा ऋतू आवश्यकतानुसार पानी दें।
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तुड़ाई : जब फलों का रंग तथा आकार अच्छा हो तभी इनकी तुड़ाई करें। इस बात का विशेष यान रखें कि तुड़ाई के समय फल चमकीले एवं आकर्षक हो। मौसम एवं किस्म के अनुसार 3 से 5 दिन के अन्तराल पर तुड़ाई करें।
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उपज |
250-300 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर या
20-25 कि्ंवटल प्रति बीघा या
10-12 कि्ंवटल प्रति कनाल
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बीज उत्पादन : बीज उत्पादन के लिए सभी कार्य सामान्य फसल की तरह ही किए जाते है कीटों द्वारा कुछ परागण सम्भव हैं अत: दो किस्मों के बीच कम से कम 200 मीटर की दूरी अवश्य रखें।
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बीज फसल में से अवांछनीय पौंधें को फूल आने से पूर्व, फूल आने पर तथा मण्डीकरण योग्य फल बनने के बाद निकाल देना चाहिए। बैंगनों का रंग जब पीला हो जाए तो इन्हें बीज निकालने के लिए तोड़े। बीज निकालने के लिए फल को आर-पार काट लिया जाता है फिर पानी मिलाकर व मसल कर पतला करके बीजों को अलग कर लिया जाता है। इसके बाद बीजों को सुखाकर साफ सुथरें थैलों में भण्डारित किया जाना चाहिए।
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बीजोत्पादन क्षमता : |
150-200 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर या
12-16 कि्ंवटल प्रति बीघा या
6-8 कि्ंवटल प्रति कनाल
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पौध् संरक्षण :
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लक्षण/आक्रमण |
उपचार
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बीमारिया
कमर तोड़ रोग :
टमाटर की तरह पौध् निकलते ही जमीन की तरफ झुक जाती है
और मर जाती है। |
टमाटर की तरह |
फाईटोपथोरा फल सड़न : फल अग्रिम भाग से सड़ने शुरू होते है। |
1. रिडोमिल एम जैड ;25 ग्राम/10 लीटर पानीद्ध का छिड़काव मौनसून से तुरन्त पहले करें।
2. मौनसून आने पर बोर्डो मिश्रण ;80 ग्राम नीला थोथा, 80 ग्राम चूना और 10 लीटर पानीद्ध या मैनकोजैब या इंडोफिल एम-45 ;25 ग्राम/10 लीटर पानी् का छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 10 दिन बाद पुन: छिड़काव करें।
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फोमोप्सिस सड़न व ब्लाईट : पत्तों पर भूरे रंग के ध्ब्बे बन जाते हैं। फलों पर सड़न के लक्षण आ जाते हैं। |
1. 3 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।
2. फसल पर बैविस्टीन +इण्डोफिल एम-45 (0.1+ 0.2%) या कम्पैनियन (0.2%) या बैविस्टीन (0.1) का फूल आने पर 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करें।
3. मैनकोजैब इण्डोफिल एम-45 ;25 ग्राम/10 लीटर पानी का छिड़काव फल लगने पर प्रति सप्ताह करें। फल तुड़ाई के समय छिड़काव न करें।
4. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाऐं
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कीट |
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तना एवं फल छेदक : सुण्डियां तने में घुसकर उसे अन्दर से खुरच डालती हैं और अन्दर की कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, पौध सूख जाता है। जब इनका आक्रमण टहनियों पर होता है तो यह सूख कर गिर जाती है। बन रहे फलों में सुण्डियां बाह्य दल पुंजो द्वारा घुस जाती है, पर बाहरी निशान नहीं छोड़ती। सुडिंयों के बाहर निकलने पर फलों पर बडे-2 छेद हो जाते है।
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1. पत्तों पर जैसे ही कीट का आक्रमाण हो वैसे ही कार्बरिल ;1.5 किलाग्राम सेविन 50 डब्ल्यू पीद्ध या एण्डोसल्फान ;1लीटरथायोडान/हिलडान/ इण्डोसिल 35 ई सीद्ध या फैनबलरेट ;375 मि. ली. सुमिसिडीन/ एग्रोफैन 20 ई सीद्ध को 750 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़के । यदि प्रकोप बना रहे तो 15 दिन के बाद पुन: यही छिड़काव करें। |
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सावधानी:
1. सभी मण्डीकरण योग्य एवं कीट ग्रसित फलों एवं टहनियों को छिड़काव करने से पहले तोड़ लें। 2. छिड़काव के बाद एक सप्ताह तक फल न तोड़े। 3. प्रभावित फलों एवं टहनियों को नष्ट कर दें ।
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हाड्डा बीटल : इसके शिशु एवं प्रौढ़ पत्तियों के बीच से हरे पदार्थ खा जाते हैं और गिर जाते है। |
कार्बरिल ;1.5 कि. ग्रा. सेविन 50 डब्ल्यू 750 लीटर पानीद्ध का छिड़काव करें।
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जैसिड व माईटस : जैसिड के शिशु और प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह से कोशिका का रस चूसते हैं। पत्ते ऊपर की ओर मुड़ कर सुख जाते है। माईटस केे कारण पत्तों पर सफेद चकते बनते हैं। पौधें की वृद्वि प्रभावित हो जाती है। |
मेलाथियान (750 मी . ली .मिथियान/मैलाथियान 50 ई.सी.) या एण्डोसल्फान;1.0 लीटर थायोडान हिलडान/ एण्डोसिल 35 ई.सी.) प्रति 75 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर से कीट के प्रभाव होते ही छिड़काव करें। |
जड़गांठ सूत्राकृमि: यह सूक्ष्मदर्शी जीव पौधे की जड़ो परपलते हैं जिससे जड़े मोटी आर गांठ वाली हो जाती है । पौधे के ऊपरी भाग पीले पड़ने लगते हैं व पौधे की वृद्वि रूक जाती है। इसका संक्रमण खेतों में कहीं कहीं होता है। वहां पौधें पर पानी की कमी के लक्षण जैसे पत्तियों का मुड़ना तथा दिन में अस्थाई रूप से पौधे का मुरझाना दिखाई देता है।
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1. प्रभावित भूमि में बैंगन तथा इसी वंश की अन्य सब्जियों जैसे टमाटर, शिमला मिर्च तथा आलू न बोयें।
2. सब्जियों के साथ अन्न की फसल विशेषकर धन की फसल का फसल चक्र अपनाने से खेतों में सूत्राकृमि की संख्या कम से कम हो सकती है।
3. हमेशा सुत्राकृमि रहित पौध्शाला से बिना गाँठ वाली जड़ो के पौधे लगायें।
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