भिन्डी
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भिन्डी प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्तीय क्षेत्रो में उगाई जाती है| परदेश में प्रति वर्ष लगभग 357 हेक्टर भूमि में यह यह उगाई जाती है एवं इसका 4114 टन उत्पादन होता है|
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उन्नत किस्में :
पूसा सावनी : यह किस्म गर्मी और वर्षा ऋतू के लिये उपयुक्त है। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं व जल्दी तैयार हो जाते हैं। औसत उपज 100-140 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर है ।
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हरभजन : यह किस्म गर्मी और वर्षा ऋतू के लिये उपयुक्त है। इसके फल अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ते हैं और गहरे हरे रंग के चिकने, नर्म , 5 किनारों वाले व कई दिनों तक मुलायम रहते है। यह किस्म पीली मौजेक के रोग से प्रभावित नहीं होती है। औसत उपज 90-100 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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पी-8 : नई किस्म, पौधे मध्य ऊंचाई वाले ;53-71 सैं. मी. ऊंचे और फल 12-15 सैं. मी. लम्बे, लगभग 10 फल प्रति पौध, येलो वेन मौजेक बीमारी के लिए प्रतिरोधी । औसत उपज 107 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर ।
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निवेश सामग्री :
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज ( ग्राम) ग्रीषम ऋतू |
15-20 |
1.5 |
0.7 |
वर्षा ऋतू |
10-12 |
1 |
0.5 |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
150 |
12 |
6 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
315 |
25 |
12.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
90 |
7 |
3.5 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
156 |
12.5 |
6.3 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
50 |
4 |
2 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
123 |
9.8 |
4.9 |
बेसालिन (बिजाई से पहले ) |
2.5 ली . |
200 मी.ली |
100मी.ली |
लासो लीटर (बिजाई के तुरंत बाद) |
4 |
320 मि.ली . |
160 मि.ली . |
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सस्य क्रियाएं : भिण्डी की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है जिसमें पानी के निकास का उचित प्रबन्ध् हो। खेत में 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी आवश्यक होती है। खेत की मिट्टी के ढलान तथा सिंचाई की सुविधनुसार उथली क्यारियां बना दें जिससें वर्षा के होने पर पानी निकास की उचित व्यवस्था हो सके
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बिजाई का समय
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निचले क्षेत्र : |
फरवरी- मार्च,जुलाई |
मध्य क्षेत्र : |
मार्च से जून |
ऊँचे क्षेत्रो : |
अप्रैल -मई |
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विधि्-1 : खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद, सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ पोटश की पूरी मात्राा तथा यूरिया की आध्ी मात्राा बीजाई से पहले भूमि में मिला दें तथा आध्ी यूरिया की मात्राा दो भागों में एक-एक महीनेबाद इस प्रकार टाप ड्रैस करें कि रसायनिक खाद पौधें पर न पड़े ।
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विधि्-2 : गोबर की खाद 12:32:16 मिश्रित खाद व म्यूरेट ऑफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूल आने के बाद डालें । |
बीजाई पंक्तियों में 45 से 60 सैं. मी. की दूरी पर करें व पोधे से की दूरी 15 सैं. मी. रखें। बीजाई 1.5 से 2 सैं. मी. की गहराई में नम भूमि में करें। बीज अंकुरण के बाद देखें जहां बीज न उगा हो तो दुबारा बीजाई कर दें तथा जहां बीज घने उगे हों तो ठीक दूरी देकर पोधे को निकाल दे |
सिंचाई, निराई व गुड़ाई:
बसन्त एवं गर्मी के मौसम की फसल में दो-तीन निराई-गुड़ाई करनी पर्याप्त होती है लेकिन वर्षा की फसल में निराई-गुड़ाई की आवश्यकता अध्कि होती है। गर्मी की फसल में 4-5 दिन के अन्तर से सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है है लेकिन वर्षा )तु की फसल में सिंचाई वर्षा के जल और खेत की नमी के आधर पर की जाती है। भिण्डी के पौधें की सुरक्षा हेतु खरपतवारों के नियन्त्राण के लिए बैसालीन का बीजाई से एक दिन पूर्व या लासो का बीजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिए। इस उपचार के बावजूद 60 के बाद खरपतवार निकालना आवश्यक है। |
तुड़ाई एवं उपज :
मँडी के लिए फल जब ठीक तैयार व मुलायम ही हों तो तोडें। उसके बाद फलों को हर 3-4 दिन में निकाल लेना चाहिए। औसत उपज 120-150 कि्ंवटल प्रति हैक्टेयर होती है। |
बीज उत्पादन :
भिण्डी के बीजोत्पादन के लिए जो क्रि याएं फल वाली फसल के लिए करते हैं, की जाती है। इसके अलावा भिण्डी की फसल अन्य प्रजातियों के खेतों से 200 मीटर की दूरी पर होनी चाहिए । अवांछनीय पौधें को कम से कम तीन बार निकालना आवश्यक है। बीजाई के एक महीना बाद फूल आने के पूर्व पत्तियों के आकार, प्रकार और रंग के लक्षणों की जाचं करके अबांछनीय पौधे को निकाल देना चाहिए और फूल आने के बाद और फलों के आकार/प्रकार के लक्षणों के अधर पर अबंाछनीय पौधें को निकाल दें । पौधें पर लगे प्रथम दो फल तथा आखिरी तीन कच्चे फल निकाल लें तो फसल एक समान पक कर तैयार हो जाती है। भिंडी जब पूरी तरह सूख जाए तो पौधें को काट कर बीज को अलग करने के उपरान्त बीज को सुखा लेना चाहिए। |
बीज उपज:
सामान्यत: एक हैक्टेयर खेत से 10-12 कि्ंवटल एवं एक बीघा से 80-100 किलोग्राम बीज प्राप्त होता है। |
विशेष सावधनियां : जिन निचले क्षेत्राों में ठण्ड अध्कि पड़ती हो या जाड़ो में पाला पड़ने की सम्भावना हो, वहां भिण्डी को 15 फरवरी से पहले नहीं बोना चाहिए व मय ऊंचाई वाले क्षेत्राों में 15 अप्रैल के बाद बीजाई करें क्योंकि 20 डिग्री सैल्सियस से कम तापमान पर भिण्डी के बीज अंकुरित नहीं होते है। इसलिए बीजाई मौसम के खुलने पर ही करें। |
पोध संरक्षण
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लक्षण
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उपचार
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बीमारिया
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येलो वेन मोजैक : रोगग्रस्त पत्तों पर धरियां दिखाई देती हैं और फिर पूरा पत्ता पीला पड़ जाता है। |
1.इस रोगकी प्रतिरोधी किस्में हरभजन, पी. 8 लगाएं।
2. रोगग्रस्त पौधें को नष्ट कर दें
3. विषाणु को बढावा देने वाले पौधें को नष्ट कर दें।
4. मैलाथियान 0.05 प्रतिशत (750 मि. ली.साईथियान/मैलाथियान50 ई. सी. या एंडोसल्फान 0.05 )100 मि. ली. थायोडाल/एन्डोसिल/हिलडान 35 ई.सी.0.05 प्रतिशत 750 लीटर पानीके हिसाब से जेसिड रोग वाहक के नियन्त्राण के लिए प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
5. प्रभावित फसल को बीज के लिए न रखें।
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कीट:
फली छेदक : कीट की सुण्डियां कलियां के पास के स्थान पर पौधे की टहनियां में छेद करती हैं। बाद में फल के अन्दर प्रवेश करके उन्हें हानि पहुँचाती हैं। विकसित हो रहा फल विकृतहोजाताहै।प्रकोपकी प्रारम्भिक अवस्था में टहनियां झड़ने लगती हैं और पौधे मर जाते हैं। |
लक्षण देखते ही मैलाथियान (750 मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई.सी. )या कार्बरिल (1.5 किलोग्राम सेविन 50 डब्लयू पी. या एण्डोसल्फान)1ली. थायोडान/एण्डोसिल/हिलडान 35 ई सी. को 750 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
सावधनी: फसल को छिड़काव करने के बाद 12 दिन तक न तोड़े ।
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ब्लिस्टर बीटल : यह कीट फूल के मुख्य भागों पर पलता है जिससे उपज कम होती है। |
कार्बरिल ;1.5 कि. ग्रा. सेविन 50 डब्लयू पी. या मैलाथियान(750मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी.) या एण्डोसल्फान;1 लीटरथायोडान/ एण्डोसिल/हिलडान 35 ई.सी.) को 750 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें । |
जैसिड : पत्तियों के नीचे की सतह से कोशिका का रस चूसते है। पत्ते ऊपर की ओर मुड़ने लगते हैं और पीले होकर गिर जाते है। |
मैलाथियान(750मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी.) या एंडोसल्फॉन;1 लीटरथायोडान/ हिलडान/एण्डोसिल 35 ई .सी. को 750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
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