HomeJob ProfilesTender NoticeBudgetRTI Act 2005Act & RulesDealersG2G LoginMain     हिंदी में देंखे    
  Welcome to Online Portal of Agriculture    
Main Menu
About Us
Achievements
Action Plan
Thrust Areas
Functions
Targets
Gallery
Organisational Structure
Agro Climate Zone
Grievance Redressal Cell
Package of Practice
Framework of Agricultural Activities for 52 Weeks
Land Use Pattern
NBMMP
Other Useful Links
Agriculture Mobile Portal
Package of Practice

मूली



मूली शीघ्र तैयार होने वाली फसल है। इसको अन्तर फसल तथा जैद फसल के रूप में बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है। मूली की जड़ें विटामिन युक्त तथा लवणों से भरपूर होती है। इसके अतिरिक्त मूली के पत्तों में भी लवण और विटामिन ए तथा विटामिन सी होती है। मूली की फलियों को भी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के शुष्क समशीतोषण तथा आर्द्र समशीतोषण पर्वतीय क्षेत्रों में इसे ग्रीष्म )ऋतू तथा उपसमशीतोष्ण, उपउष्ण कटिबन्ध् क्षेत्रों में दोनों ग्रीष्म तथा शीत )ऋतू में बीजा जाता है। यूरोपियन किस्मों का बीज शुष्क समशीतोषण तथा आर्द्र समशीतोषण पर्वतीय क्षेत्रों मे ही पैदा किया जाता है। इसी प्रकार एशियाटिक किस्में के उच्चगुणवत्ता वाले बीज उप-समशीतोषण तथा उप-उष्णकटिबन्ध् क्षेत्रों में पैदा किये जाते हैं । 

उन्नत किस्में:


क) एशियाटिक प्रकार:

जापानीज व्इाइर्ट जडे़ सफदे , लम्बी, बले नाकार, 60 दिना मे तयैार । ऊचे तथा निम्न पवर्तीय क्षत्रेांे के लिए उपयुक्त किस्म। आसैत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टर

चाईनीज़ पिंक: जड़ें गुंलाबी, बेलनाकार, सफेद गुद्दा, लाल मुख्य धरी वाले लम्बे पत्तें, 45 दिनों में तैयार । ऊँचे तथा निम्न पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। औसत उपज 200-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।

पूसा चेतकी: जड़ें लम्बी, सफेद तथा ग्रीष्म )ऋतू के लिए उपयुक्त किस्म । औसत उपज 150-200 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।

ख) यूरोपियन प्रकार :



पूसा हिमानी: 30 से 35 सैं. मी. लम्बी, मोटी, नुकीली, सफेद हरे शिखर वाली, गुद्दा शुद्व सफेद करारा, मीठी गन्ध् वाला परन्तु थोड़ा तीखा। 55-60 दिनों में तैयार। दिसम्बर से फरवरी तक मैदानी तथा निचले क्षेत्रों में तथा ग्रीष्म )ऋतू मे मध्य व ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए अच्छी किस्म । औसत उपज 225-250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।

पालम ह्रदय: पत्ते सीधे बिना किनारों वाले, जड़े गोलकार से चपटी, ऊपर से हलकी हरी तथा निचला भाग हल्का सफेद । गुद्दा गुलाबी, कुरकुरा तथा रेशा रहित रहता है। विटामिन सी प्रचुर मात्रा में तथा सलाद के लिए अच्छी किस्म । जड़े 45-50 दिनों में तैयार तथा औसत उपज 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है ।

व्हाईट आइसिकल : पत्ते छोटे, जड़े पतली नुकीली, 12-15 सैं. मी. लम्बी शुद्व सफेद, मध्यम तीखी, 30 दिनों में तैयार, बार-2 लगातार लगाने के लिए उपयुक्त किस्म, औसत उपज 60 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।

 

निवेश सामग्री :

 


  प्रति हैक्टेयर प्रति बीघा प्रति कनाल
बीज मात्रा (किलो ग्राम) 6-8 0.50-0.60 0.25-0.30
गोबर की खाद (क्विंटल ) 100 8 4
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 200 16 8
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 300 24 12
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 60 5 2.5
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 156 12.5 6.3
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 163 1.3 0.7
यूरिया ( किलो ग्राम) 175 14 7
वैसालीन 1.5 ली. 120 मि.ली. 60 मि.ली.

 

बीजाई का ढंग:


मूली के बीज को खेत में सीध मेढ़ों के ऊपर बीज दिया जाता है। मूली के पौधें का रोपण नहीं किया जा सकता है । बीज को 1.25 सैं. मी. गहरा तथा 30 सैं. मी. दूरी की पंक्तियों (मेढ़ों) पर उगाया जाता है। बीज को 5 से 10 सैं. मी. की दूरी पर उगाया जाता है। बीजाई के बाद बीज को मिट्टी से ढक दें। मूली की बीजाई का समय क्षेत्रों की ऊंचाई पर निर्भर करता है। 
निचले क्षेत्र अगस्त-सितम्बर
मध्य क्षेत्र जुलाई-अक्तूबर
ऊंचे क्षेत्र मार्च-अगस्त

सस्य क्रियाएं:


हल चलाने से पहले खेत में गोबर की खाद डालकर अच्छी तरह से तैयार कर लें।

विधि1: गोबर की खाद, सुपर फास्फेट और म्यूरेट आॅफ पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करने समय डालें। यूरिया की आध्ी मात्रा बुआई पर तथा शेष आधी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें।

विधि2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया की आध्ी मात्रा बुआई पर तथा शेष आध्ी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें।

फसल में छंटाई बहूत ही आवश्यक है। जिससे कि पौधें में 5-10 सैं. मी. का अन्तर बना रहे। मूली की जड़ के बाहर निकलने पर जड़ों के चारों तरफ मिट्टी चढ़ा दें।

निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियन्त्राण:


फसल में 3-4 पत्ते निकलें हों तो पहली निराई-गुड़ाई करें व 3-4 सप्ताह के बाद दूसरी बार फिर करें। फसल निकलने से पहले पैन्डीमिथलिन (स्टाम्प) 1.2 किलोग्राम (स.प.) या फलूक्लोरालिन (बैसालिन) 0.9 किलोग्राम (स. प.) या एलाक्लोर (लासो) 1.5 किलोग्राम (स. प.) या आईसोप्रोेटूरान 1.0 कि. ग्रा. या मटैालाक्लारे 1.0 लीटर को 750-800 लीटर पानी मंे घाले कर प्रति हेक्टर छिडक़ाव करे

कटाई:


मूली की जड़ें जब अभी कोमल ही हों, तभी बाहर निकालें। उखाड़ने से पहले हल्की सिंचाई करना आवश्यक है जिससे कि जड़ों को बाहर खींचने में आसानी रहती है। जड़ों को पत्तों के साथ बाहर निकाला जाता है तथा पानी से धेकर, छंटाई करते है। अवांछनीय जड़ो को निकाल दिया जाता है।

उपज


  प्रति हेक्टर प्रतिबीघा प्रतिकनाल
यूरोपियन किस्में (किंवटल) 50-60 4-5 2-2.5
एशियाटिक किस्में (किंवटल) 150-200 12-16 6-8


बीजोत्पादन:



यूरोपियन किस्मों का बीज पर्वतीय क्षेत्रों में ही सम्भव है। शीतोष्ण (यूरोपियन) किस्मों की कटाई, लाहौल व किन्नौर में अप्रैल तथा एशियन किस्मों का शेष सभी क्षेत्रों में सितम्बर-अक्तूबर में लगाकर बीज बनाया जाता है।

बीजाई:



बीज को 5-10 सैंटीमीटर की दूरी पर बनी मेढ़ों पर 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसके लिए 6-8 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है। बीज लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई करें ताकि अंकुरण अच्छा हो। जलवायु के अनुकूल 8 से 10 दिनों बाद सिंचाई करते रहें।

एक हैक्टेयर से प्राप्त जड़ें 4-5 हैक्टेयर भूमि में बीज उत्पादन के लिए पर्याप्त होती है। जड़ों को उखाड़ कर जातीय गुणों के आधर पर चुना जाता है। तथा इनके शिखर काट दिए जाते है। एशियन किस्मों के 5 सैंटीमीटर से ऊपर व एक तिहाई जड़ काटकर दबा दिया जाता है। यूरोपियन जातियों में ऐसी कटाई नहीं की जाती है । शिखर को भूमि के ध्रातल से ऊपर ही रखकर रोपा जाता है। रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें। पंक्तियों और पौध्े के मध्य 60*30 सैंटीमीटर का अन्तर रखें।

 

निवेश सामग्री :

 

  प्रति हेक्टर प्रतिबीघा प्रतिकनाल
गोबर की खाद (क्विंटल ) 100 8 4
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 300 24 12
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 375 30 15
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 90 7 3.5
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 188 15 7.5
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 90 7 3.5
यूरिया ( किलो ग्राम) 188 15 7
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 41 3.3 1.7
यूरिया ( किलो ग्राम) 278 22 11

विधि1: गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिला लें। सुपर फास्फेट व पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा जड़ें लगाते समय खेतों में मिला लें। शेष यूरिया खाद एक महीने बाद गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें।>

विधि2: गोबर की खाद , 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक तिहाई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों केकल्ले निकलते समय डालें

पृथकीकरण दूरी:



शुद्व बीज तैयार करने के लिए दो किस्मों एवं अन्य किस्मों में आपसी अन्तर 1000 से 1600 मीटर तक रखें ।

कटाई व गहाई: फलियां सख्त होने के कारण इसमें गहाई बहुत कठिन है तथा कई बार करनी पड़ती है, पक्की फलियां एक ही बार में काट ली जाती है और इन्हें धूप में सुखाकर गहाई की जाती है ।

बीज उपजः


 

  प्रति हेक्टर प्रतिबीघा प्रतिकनाल
एशियन किस्में 9-10 किंवटल 72-80 कि. ग्रा. 36-40 कि. ग्रा.
यूरोपियन किस्में 5-6 क्ंिवटल 40-48 कि. ग्रा. 20-24 कि. ग्रा.
Main|Equipment Details|Guidelines and Publications|Downloads and Forms|Programmes and Schemes|Announcements|Policies|Training and Services|Diseases
Visitor No.: 08894367   Last Updated: 13 Jan 2016