विलायती पालक
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यह एक नकदी फसल है जिसकी जड़ों से चीनी बनाई जाती है। इसका बीजोत्पादन हिमाचल के ऊंचाई वाले शुष्क पर्वतीय क्षेत्रों में सफलता से किया जाता है। |
उन्नत किस्में:
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वरजीनिया सैवाय: इसका बीज कांटेदार तथा पत्ते गहरे हरे रंग के बड़े और गोल सिरे वाले होते हंै । औसत उपज 100-125 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर।
लौंग स्टेंडिंग: पत्ते गहरे रंग के तने, मोटे, लम्बे व ध्ीरे फैलने वाले । औसत उपज100-125 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर । |
निवेश सामग्री:
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प्रति हैक्टैयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज (कि. ग्रा.) |
30-35 |
2.4-2.8 |
1.2-1.4 |
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गोबर की खाद एवम् अन्य खादें पालक की तरह |
बीजाई:
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निचले क्षेत्र |
अक्तूबर-नवम्बर |
मध्य क्षेत्र |
सितम्बर-अक्तूबर |
ऊंचे क्षेत्र |
अप्रैल-जुलाई |
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अन्तर: 30*5-10 सैं. मी.
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सस्य क्रियाएं: पालक की तरह |
कटाई व उपज:
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4-5 सप्ताह बाद पहली कटाई की जाती है। इसके बाद 15-20 दिन के अन्तर पर लगभग 6 कटाईया ली जाती है। |
उपज (किवटल)
प्रति हैक्टैयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
100 |
8 |
4 |
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बीज उत्पादन:
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पालक की दूसरी किस्मों के बीज फसल की दूरी कम से कम 1000 मीटर होनी चाहिए क्योंकि पालक की तरह यह भी हवा से परागित फसल है। बीज फसल में से अवांछनीय एवं नर पौधें को दो या तीन बार निकालना आवश्यक है। इसका बीज उत्पादन केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही अच्छा होता है। बीज उत्पादन की बाकी सभी क्रियाएं पालक की फसल की तरह ही होती है। विलायती पालक में बीज पकने पर झड़ जाता है। अतः बीज पकने पर 3-5 बार इनकी कटाई की जाती है। इसके बाद बीजों को अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण कर लिया जाता है। |
बीज उपज: |
प्रति हैक्टैयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
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4-5 क्ंिवटल |
32-40 कि. ग्रा. |
16-20 कि. ग्रा. |
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