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जड़दार सब्जियां


हिमाचल प्रदेश में, जड़दार सब्जियां जैसे कि मूली, शलजम, गाजर तथा चुकन्दर इत्यादि को बैमौसमी सब्जियों के रूप में उगाया जाता है। जड़ वाली सब्जियों में अध्कि लवण तथा विटामिन होते हैं तथा कम समय में तैयार होने व तेजी से बढ़ने वाली होती है। शुष्क समशीतोष्ण तथा आद्र्र समशीतोष्ण क्षेत्रों में इन सब्जियों को ग्रीष्म )ऋतू में उगाया जाता है। मध्य तथा निचले पर्वतीय क्षेत्रों में इन सब्जियों को शीत )ऋतू में उगाया जाता है। इन सब्जियों के उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन शुष्क समशीतोष्ण तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है।

 

शलजम


शलजम शीत )ऋतू की फसल है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के शुष्क समशीतोष्ण तथा समशीतोष्ण पर्वतीय क्षेत्रों में इसे ग्रीष्म )तु में उगया जाता है जिससे किसानों को अध्कि आर्थिक लाभ पहुँचता है। उप-समशीतोष्ण तथा उप-उष्णकटिबन्ध् क्षेत्रों में इसकी फसल शीत )ऋतू मे ही उगाई जाती है।

उन्नत किस्में:



क) यूरोपियन प्रकार

पर्पल टाप व्हाईट ग्लोब : जड़े लम्बी व गोल, ऊपर का भाग बैंगनी व लाल परन्तु निचला भाग सफेद, 55-60 दिनों में तैयार । ऊंचे तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म। औसत उपज 300-375 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।


स्नोबाल: पर्पल टाप व्हाईट ग्लोब की तरह परन्तु जड़े छोटी, गोल, हल्की पीली, 60 दिनों में पक कर तैयार, मध्य तथा ऊंचे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म। औसत पैदावार 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ।


पूसा चंद्रिमा: जड़ें बड़े आकार की, गोलाकार या चमटी सफेद, शिखर मध्यम, परन्तु कम गहरा । अगेती फसल, अक्तूबर की वीजाई के लिए उपयुक्त । मध्य तथा ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त । औसत उपज 310-375 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर।

ख) एशियाटिक प्रकार:


पूसा स्वेती: जड़े़ बिल्कुल सफेद, मध्यम आकार, 40-45 दिनो में तैयार।


पूसा स्वर्णिमा: अगेती, शिखर मध्यम और गहरे । जड़े चपटी औश्र गोल, छिल्का हल्का पीला, पहाड़ी क्षेत्रों में जून से अक्तूबर तथा मैदानी क्षेत्रों में अक्तूबर से दिसम्बर तक लगाने के लिए उपयुक्त। 70 दिनों में तैयार । औसत उपज 300-375 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।

 

 

निवेश सामग्री :

 


  प्रति हैक्टेयर प्रति बीघा प्रति कनाल
बीज(ग्राम) 4.45 320-360ग्रा. 160-180ग्रा.
गोबर की खाद (क्विंटल ) 100 8 4
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 100 8 4
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 250 20 10
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 60 5 2.5
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 125 10 5
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 25 2 1
यूरिया ( किलो ग्राम) 75 6 3
वैसालीन 1.5 ली. 120 मि.ली. 60 मि.ली.

 

बीजाई का ढंग:


शलजम की बीजाई, बीज के द्वारा सीधे खेतों में की जाती है। बीज को पँक्तियों में 1-1.5 सैंटीमीटर गहरा बीजें तथा पँक्तियों में 30 सैटीमीटर दूरी रखें। इसके अतिरिक्त छंटाई के समय पौधे से पौधे का अन्तर 10 सैंटीमीटर रखें। 

बीजाई का समय

 

निचले क्षेत्र सितम्बर-नवम्बर
मध्य क्षेत्र अगस्त-अक्तूबर
ऊंचे क्षेत्र अप्रैल-जुलाई

 

सस्य क्रियाएं:



बीजाई के पहले खेत अच्छी तरह से तैयार कर लें।

विधि1: गोबर की खाद, सुपर फास्फेट और म्यूरेट आॅफ पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया की आधी मात्रा बुआई पर तथा शेष आधी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें ।


विधि2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया की आधी मात्रा बुआई पर तथा शेष आधी मात्रा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें ।

खरपतवारनाशक बैसालीन का उपयोग खेत में बीज बीजने से पहले शाम के समय करें। बीजाई के समय भूमि में उपयुक्त नमी होनी याहिए । ग्रीष्म )ऋतू की फसल के लिए 5-6 दिनों के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधें में सामान्य अन्तर रखने के लिए छंटाई प्रक्रिया आवश्यक है। पहली छंटाई उस समय करें जब पौधे 4-5 सैं. मी. लम्बे हो जाएं और दूसरे छंटाई उसके 6-7 दिनों बाद करें । समय-2 पर फसल में निराई व गुड़ाई करते रहें ताकि पौधें को अच्छा वातावरण मिल सके। बीज ाई के 20-25 दिनों बाद पौधें के इर्दगिर्द मिट्टी चढ़ाएं दें जिससे जड़ें मिट्टी से ढक जायें ।

 

कटाई:

शीघ्र पकने वाली किस्में 60 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है, जबकि पछेती किस्में 90-120 दिनों में तैयार होती है। फसल की कटाई से पहले खेत में उपयुक्त मात्रा में नमी होना आवश्यक है। जड़ों को भूमि से खींच कर या खुरपा इत्यादि से उखाड़ा जाता है तथा जड़ो को पानी से धेकर इसकी छंटाई की जाती है। अवांछनीय जड़ो को निकाल दिया जाता है।

 

उपज क्विंटल प्रति हेक्टर प्रतिबीघा प्रतिकनाल
  250-300 20-24 10-12

बीजोत्पादन:

शलजम परपरागण किस्म की फसल है और सरसों के साथ बहुत ही आसानी से परपरागित हो जाती है। इसलिए सरसों तथा इसकी दूसरी किस्मों 1000 से 1600 मीटर के अन्तराल पर लगाया जाता है ताकि शुद्व बीज प्राप्त किया जा सके । शीतोष्ण किस्मों का बीज मध्य तथा ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तैयार किया जाता है। उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त करने के लिए जड़ से बीज प्राप्त करने की विधि अपनाएं । शुष्क शीतोष्ण क्षेत्रों में जड़ों को शीत )ऋतू में 3ग0.6ग0.6 मीटर आकार की नाली में 3 से 5 तहों में रखा जाता है। तथा ऊपर से लकड़ी के तख्ते रख कर इसके ऊपर 15 सैं. मी. मोटी मिट्टी की तह बिछाते हैं। वायु के आवागमन के लिए सुराख अवश्य रखें । बर्फ पिघल जाने पर नालियों को मार्च में खोला जाता है। जड़ो को खेत में रोप दिया जाता है।


फसल को मध्यवर्ती क्षेत्रों में सितम्बर-अक्तूबर में तथा निचले पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर से नवम्बर तक लगाया जाता है। बीज की मात्रा 4 से 4.5 कि. ग्रा. प्रति हैक्टेयर आवश्यक है तथा इससे जड़ें 4-5 हैक्टेयर में लगाने के लिए पर्याप्त होती है। चुनी हुई जड़ों को 60*30 सैं. मी. की दूरी पर लगाएं।

 

निवेश सामग्री :

 


गोबर की खाद (क्विंटल ) 200 8 4
विधि -1
यूरिया ( किलो ग्राम) 200 8 4
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) 300 24 12
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 90 7.2 3.5
विधि- 2
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) 156 1.25 6.3
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) 59 5 2.5
यूरिया ( किलो ग्राम) 175 14 7

 

विधि1: गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिला लें। सुपर फास्फेट व पोटाश की सारी मात्रा व यूरिया की आध्ी मात्रा जड़ें लगाते समय खेतों में मिला लें । शेष यूरिया खाद एक महीने बाद गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें।


विधि2: गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूलों के कल्ले निकलते समय डालें।

रोगिंग:


1. शुरू में ही अलग किस्म के पौधें उखाड़ दें।
2. उखाड़ते व रोपते समय जड़ के आकार, रंग, बनावट और रेशे का निरीक्षण करें ।
3. फूल आने पर अवाँछनीय, रोगी पौधें और खरपतवार को निकाल दें ।

तुड़ाई व गहाई:

फसल मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मई में और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जून में तैयार हो जाती हंै । इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि परागण में सहायता करने वाले कीड़े पर्याप्त मात्रा मे हों ताकि अध्कि बीज बन सकें । जब लगभग आध्ी फलियाँ पक जाएं, उन्हें शखाओं सहित काट लें । एक समान सुखाने के लिए इन शाखाओं के गट्ठे बना कर ध्ूप में हर 4-5 दिन ऊपर नीचे बदल कर सुखायें। सूखाी फलियों से बीज झाड़ कर एकत्रा करें और सुखाएं तथा साफ करके ग्रेंडिंग करें और बीज को ठण्डे व सूखे स्थान पर रखें।

 

बीज उपज (क्विंटल ) प्रति हेक्टर प्रतिबीघा प्रतिकनाल
  5.5-6 0.44-0.48 0.20-0.24
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