सरदा मैलन (अफगानी खरबूजा)
कुछ वर्ष पूर्व तक यह फसल अफगानिस्तान में ही पैदा होती थी और इसको भारत में अभी तक आयात किया जाता है। सरदा मैलन आम खरबूजों की अपेक्षा बड़ा, ज्यादा मीठा, रसवाला, तथा तोड़ने के बाद ज्यादा देर तक रखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह मण्डी में अगस्त-सितम्बर में आता है जबकि आम खरबूजा जून में समाप्त हो जाता है ।
हिमाचल प्रदेश में किन्नौर जिले में समुद्रतल से 1800 से 2200 मीटर के बीच के क्षेत्रों में इसकी सफल खेती की जा रही है।
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उन्नत किस्में:
सलैक्शन-1: फल छोटे आकार का, औसत भार एक किलोग्राम तक तथा अगेती किस्म । औसत उपज 75-90 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर । |
सलैक्शन-9: फल बड़े आकार का, औसत भार एक किलोग्राम से अध्कि तथा पछेती किस्म । औसत उपज 90-100 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर ।
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निवेश सामग्री : |
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प्रति हेक्टर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
बीज ( किलो ग्राम) |
1-1.5 |
80-120ग्राम |
40-60ग्राम |
खाद एवं उर्वरक |
गोबर की खाद (क्विंटल ) |
100 |
8 |
4 |
विधि -1 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
120 |
9 |
5 |
सुपरफास्फेट ( किलो ग्राम ) |
375 |
30 |
15 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
50 |
4 |
2 |
विधि- 2 |
12.32.16 मिश्रित खाद (किलो ग्राम ) |
187.5 |
15 |
7.5 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (किलो ग्राम) |
55 |
4 |
2 |
यूरिया ( किलो ग्राम) |
60 |
4.8 |
2.4 |
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बिजाई
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केवल ऊंचे शुष्क क्षेत्रों में : |
मई |
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कतारों मे 1.5 मीटर की दूरी पर तथा पौधें में 1 मीटर की दूरी रखकर 3 या 4 बीज लगाएं तथा अंकुरण के बाद एक या दो पौधे ही रखे। नोट: मई महीने में यदि मौसम न खुले तो इसके बीज को पोलीथीन की थैलियों मे उगाए। रात को इन थैलियों को पाले तथा ठण्ड से बचाएं तथा दिन को इन्हे धूप में रखें। |
सस्य क्रि याएं:
पहले खेत में 45 सैंटीमीटर चैड़ी नालियां 1.5 मीटर की दूरी पर बना लें तथा बाद में एक मीटर की दूरी लगभग 30 सैंटीमीटर गहरे गड्डे करें। विधि 1 के अनुसार इन गड्डों में पहले गोबर की खाद, सुपरफास्फेट और म्यूरेट आॅफ पोटाश की कुल मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा डालें और अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। इसके बाद गड्डे भर दें और बीजाई करें । यूरिया का शेष भाग दो बराबर भागों में बांटकर एक-एक मास के अन्तराल पर डालें ।
विधि 2: के अनुसार गोबर की खाद, 12ः32ः16 मिश्रित खाद व म्यूरेट आॅफ पोटाश की सारी मात्रा बीजाई के समय डालें। यूरिया खाद को दो बराबर भागों में बांटकरएक-दो महीने के अन्तराल पर फसल में डालें।
बीजाई के बाद 15-20 दिन के अन्तराल पर 2 या 3 बाद निराई-गुड़ाई करें । 5-7 दिन के अन्तराल पर केवल नालियों में ही सिंचाई करें। लताओं को जमीन पर ही रहने दें और फूल आने के बाद ज्यादा उथल-पुथल न करें। लताओं एवं फलों को पानी से न भिगोएँ।
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तुड़ाई:
खरबूजे की तरह सलैक्शन -1 तथा सलैक्शन-9 के फल बेलो से आसानी से नहीं टूटते है। इनकी तुड़ाई फलों का रंग बदलने (पीला पड़ने) तथा खरबूजे जैसी खुशबू आने के आधर पर ही की जाती है। साधरणतयः बीजाई के लगभग 100 से 110 दिनों के बाद फसल पककर तैयार हो जाती है। तथा प्रत्येक लता पर 2 या 3 फल लगते हैं। |
उपज (क्विंटल ) |
प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
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250-300 |
20-24 |
10-12 |
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बीज उत्पादन:
करेला, कद्दू, चप्पन कद्दू (स्कवैश) घीया (लौकी) तथा सरदा मैलन (अफगानी खरबूजा) का बीज उत्पादन सामान्य फसल की तरह ही किया जाता है। यह परपरागित फसलें हैं तथा इनमें परागण कीटों द्वारा होता है। अतः प्रमाणित बीज के लिए एक ही फसल में एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति का अन्तर कम से कम 400 मीटर होना चाहिए। अवांछनीय पौधें को फल आने पर, फलों के विकास के समय तथा फल पूरी तरह बनने के बाद निकाल देना आवश्यक है। कद्दू चप्पन कद्दू व सरदा मैलन में बीज गूद्दे से पूरी तरह घिरे रहते है। अतः इनमें खीरें की तरह रसायनिक विध् िसे बीज अलग किए जाते है। जबकि करेला और घीया में फलों को पकने दिया जाता है। बीज निकालने के बाद इन्हे अच्छी तरह सुखा कर भण्डारण करना चाहिए। |
उपज
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प्रति हैक्टेयर |
प्रति बीघा |
प्रति कनाल |
करेला |
2-3 क्विंटल |
16-24 कि. ग्रा. |
8-12 कि. ग्रा. |
कद्दू |
3-4 क्विंटल |
24-32 कि. ग्रा. |
12-16 कि. ग्रा. |
चप्पन कद्दू |
3-4 क्विंटल |
24-32 कि. ग्रा. |
12-16 कि. ग्रा. |
(स्कवैश) |
घीया (लौकी) |
3-5 क्विंटल |
24-40 कि. ग्रा. |
12-20 कि. ग्रा. |
सरदा मैलन |
2-2 क्विंटल |
8-16 कि. ग्रा. |
4-8 कि. ग्रा. |
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पोध संरक्षण |
लक्षण
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उपचार
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बीमारिया |
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पाऊडरी मिल्डयू: फफूदं के कारण पत्तों, तने और अन्य रसीले भागों पर सफेद आटे जैसे ध्ब्बे पड़ते है। फल घटिया किस्म के हो जाते है । |
1. कैराथैन (10 मि.ली./10 ली. पानी )का 2 से 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। 2. सितारा (हैक्साकोनाजोल 5 ई सी)0.05% या टेबूकानोजोल (0.04%) का 15 दिन के अन्तराल पर या शेयर (0. 3) का 10 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करें। |
डाऊनी मिल्डयू : फलों पर फीके कोणीय पीले भूरे ध्ब्बे बनते है जो बाद में काले हो जाते हैं और फिर पौध मुरझा जाता है। |
जुलाई के अन्त में इण्डोफिल एम-45 (0.25%) तथा उसके बाद एक छिड़काव रिडोमिल एम जैड (0.25) और फिर 15 दिन के अन्तर पर दो छिड़काव इण्डोफिल एम 45 के करें। |
एन्थे्रकनोज़ : पत्तों और फलों परध्ब्बे से बन जाते हैं । |
मैनकोजैब या इंडोफिल एम-45 अथवा हैक्साकैप (25 ग्रा./10 लीटर पानी का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें। |
कीटः |
फल मक्खी: ये कीड़े गूद्दे में अण्डे देते हैं और फल को तेजी से खाते हैं जो बाद में खाने योग्य नहीं रहते । कीड़े बड़े होने पर फल को छोड़ते हैं और भूमि गत हो जाते है। |
जून-जुलाई में जब फल मक्खी फसल पर नजर आए तभी उन्हें आकर्षित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ या चीनी और 10 मि. ली. मैलाथियान 50 ई. सी. को 5 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें । फैनथियान 50 ई. सी.) 5 लीटर पानी में घोलकर छिड़के । फैनथियान (75 मि. ली. लैबसिड 1000) या फैनीट्रोथियान (750 मि. ली. सुमिथियान/ फोलीथियान /एकोथियान 50 ई. सी.) का 750 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
कद्दू का लाल बीटल: प्रौढ़ पत्तों और फूलों पर पलते हैं तथा बेल धीरे-धीरे मुरझा जाती है। कीड़े तने में छेद करते हैं । इसके प्रकोप से कभी-कभी फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। |
मैलिथायान ( 7 5 0 मी.ली . साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी.) या एंडोसल्फान (1 लीटर थायोडान/ एण्डोसिल/हिलडान 35 ई. सी.) का 750 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। |
माईटस: ये छोटे कीड़े कोमल पत्तों से रस चूसते हैं और वहां पर सफेद स्थान बन जाते है। इस तरह पौधें की बढ़वार कम होती है। |
कीट का प्रकोप होने पर मैलाथियान (750 मि. ली. साईथियान/मैलाथियान 50 ई. सी.) का 750 लीटर पानी में छिड़काव करें। 10 दिन बाद फिर छिड़काव करें । |
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सावधनियां: |
1. दवाई छिड़कने के बाद 15 दिन तक फल न तोड़े ।
2. गले सड़े फलों को एकत्रा करके गड्ढे में दबा दें। कीड़ों को मारने के लिए इस गड्ढे में 5 लीटर पानी 10 मि. ली. मैलाथियान मिलाकर छिड़कें । |