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सब्ज़ी एवं सवस्थ पौध उत्पादन – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

सब्जियों का मानव जीवन में विशेष महत्व है| सब्जियां हर व्यक्ति के लिए पौष्टिक, सन्तुलित तथा स्वादिष्ट आहार प्रदान करने के साथ-साथ किसानों की अधिक स्तिथि में सुधार लाने में भी सहायक हैं| सब्जियों की बहु – फसलें वर्ष भर ली जाती है| हिमाचल प्रदेश के कुछ समशीतोष्ण क्षेत्रों में, समशीतोष्ण सब्जियों के शुद्ध व स्वस्थ बीज उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु व क्षमता विद्यमान है|

प्रदेश के अनुकूल जलवायु के आधार पर सब्जियां उगाने के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का चयन किया गया है| टमाटर, शिमला मिर्च, फ्रॉसबीन, मटर, बन्दगोभी, खीरा, फूलगोभी और मूली की फसलें बेमौसमी सब्जियों की भांति तैयार करके पड़ोसी प्रांतो को भेजी जाती हैं जिससे किसानों को बहुत लाभ हो रहा है| समशीतोष्ण सब्जियों जैसे कि बन्दगोभी, गाजर, मूली, शलजम, फूलगोभी, लाल बन्दगोभी, पार्सल, चुकन्दर और चिकोरी के पैदा है|

कांगड़ा के समीप के क्षेत्र जैसे पपरोला, बैजनाथ, नगरोटा और जमानाबाद तथा सोलन के समीप के क्षेत्र व अन्य स्थान जैसे चायल, ठियोग, राजगढ़, बजौरा, नगवांई और चम्बा के डलहौजी व भरमौर बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं| इसके अतिरिक्त लाहौल, किन्नौर, तथा सोलन के समीप के क्षेत्र शीतोष्ण सब्जियों के उच्च गुणवता वाले बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त पाये गये हैं| मणडी, सिरमौर, कुल्लू तथा चम्बा जिलों में भी बीज उत्पादन की क्षमता है| शीतोष्ण सब्जियों का बीज पहले विदेशों से आयात किया जाता था लेकिन अब हिमाचल प्रदेश पूरे राष्ट्र की मांग को पूरा कर रहा है| इसके अतिरिक्त विदेशों को भी बीज निर्यात कर रहा है|

भौगोलिक स्थिति के आधार पर हिमाचल प्रदेश का वर्गीकरण चार क्षेत्रों में किया गया है :

  1. उप-उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र : इस क्षेत्र में समुद्र तल से 914 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र आते है| मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सभी सब्जियां इस क्षेत्र में भी उगाई जाती है| परन्तु उनके बुआई के समय को थोड़ा पहले करना पड़ता है यहां पर टमाटर, बैंगन, खीरा, शिमला मिर्च, फ्रॉसबीन तथा मटर का उत्पादन किया जाता है| इसके अतिरिक्त एशियन मूली (जापानी व्हा व्हाईट और चाइनीज पिंक), शलजम, (पर्पल टाप व्हाईट ग्लोब) और भिण्डी, मटर मेथी व पालक का शुद्ध बीज पैदा किया जाता है|
  2. उप समशीतोष्ण क्षेत्र (मध्य पर्वतीय क्षेत्र) : यह क्षेत्र तल से 915 से 1523 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है| यहां पर 90 से 100 सैं.मी. तक वर्षा होती है| बेमौसमी सब्जियां जैसे टमाटर, फ्रॉसबीन, शिमला मिर्च तथा अदरक इत्यादि की खेती व्यापारिक स्तर पर कुछ चुने हुए क्षेत्रों में की जा रही है| फूलगोभी की पछेती किस्मों का बीजोत्पादन सोलन, सिरमौर तथा कुल्लू के आस-पास के क्षेत्रों में किया जा रहा है| जहां पर ताजा सब्जियों को मण्डियों में भेजने की सुविधा कम है वहां पर शलजम, मूली, शिमला मिर्च, फ्रॉसबीन, भिण्डी, मटर, चुकन्दर, आदि का बीजोत्पादन किया जाता है
  3. आर्द्र समशीतोष्ण क्षेत्र (आर्द्र ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र): यह समुद्र तल से 1524 मीटर से लेकर 2742 मीटर तक की ऊंचाई तक स्थित हैं| वहां 100 से 200 सैं.मी. मौनसून ऋतु में वर्षा होती है| नवम्बर से मार्च तक बर्फ पड़ने और अधिक ठण्ड के कारण सब्जियों के उगने में बाधा पड़ती है| मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण सब्जियों जैसे मटर, फूलगोभी, बन्दगोभी, मूली, शलजम, गाजर, चुकन्दर और पत्ते वाली हरी सब्जियों गर्मियों के महीनों में उगाया जाता है| तथा इन्हें मैदानी क्षेत्रों में बेमौसमी सब्जी के रूप में उपलब्ध करवाया जाता है| इस क्षेत्र के कुछ भागों में समशीतोष्ण सब्जियों का बीज पैदा किया जाता है|
  4. शुष्क समशीतोष्ण क्षेत्र (शुष्क ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र) : यह क्षेत्र समुद्र तल से 2743 मीटर ऊंचाई से ऊपर स्थित हैं| प्रदेश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र लाहौल-स्पीति, किन्नौर, पांगी व भरमौर शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र हैं| इन क्षेत्रों में ग्रीष्म में 25 से 40 सैं.मी. वर्षा और शरद ऋतु में 3 से 5 मीटर बर्फ पड़ती है| जहां पर सिंचाई की व्यवस्था है वहां पर गर्मी के मौसम में कुछ सब्जियों की खेती की जाती है| लाहौल घाटी में अधिकतम क्षेत्र मटर की फसल के अंतर्गत बीज जाता है तथा अन्य सब्जियां बन्दगोभी, फूलगोभी प्याज और जड़ वाली सब्जियां भी उगाई जाती है| इस क्षेत्र में समशीतोष्ण सब्जियों के उच्च गुणवत्ता वाले बीज तैयार किए जाते है| उदाहरणतय: बन्दगोभी, चुकन्दर, चिकोरी, गाजर, मूली, शलजम शीतोष्ण किस्मों व फ्रॉसबीन का उत्तम बीज तैयार किया जाता है|

विभिन्न क्षेत्रों की सब्जियां :

क्र.

क्षेत्र

सब्जी उत्पादन

बीज उत्पादन,

1 निचले क्षेत्र या उप उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र (914गाजर मीटर और वर्षा 60-100 सैं.मी.) बैंगन, खीरा, भिंडी,मटर टमाटर (बरसाती),फ्रॉसबीन और प्याज(खरीफ) एशियनमूली, भिंडी, प्याजफूलगोभी (अगेती),देशी मटर,टमाटर, बैंगन, खीरा,करेला, घीया
2 मध्य ऊँचाई वाले क्षेत्र मिर्च,या उप-समशीतोष्णक्षेत्र (915-1523 मीटर औरवर्षा 90-100 सैं.मी.) टमाटर फ्रॉसबीन, शिमला मिर्च, खीरा,मटर, अदरक, भिण्डी फूलगोभी (पछेती), शलजम,शिमला मिर्च,फ्रॉसबीन, चुकन्दर, भिण्डी
3 ऊंचे ठण्डे व नमी वाले क्षेत्र या आर्द्र समशीतोष्ण क्षेत्र (1524-2742 मीटर और वर्षा 100-200 सैं.मी. तथा बर्फीले क्षेत्र) मटर, फ्रॉसबीन,फूलगोभी, बन्दगोभी, मूली, शलजम, गाजर  
4 ऊंचे ठण्डे शुष्क क्षेत्र या शुष्क समशीतोष्णक्षेत्र (2743 मीटर से ऊंचे,वर्षा 25-40 सैं.मी. और 3 से 5 मीटर तक बर्फ) मटर, गोभी वर्गीयफसलें, शलजम और प्याज बन्दगोभी,चुकन्दर चिकोरी,गाजर,मूली,शलजम की शीतोष्ण किस्में, फ्रॉसबीन, इत्यादि

सब्जियों की अच्छी उपज के लिए शुद्ध बीज लेना चाहिए| टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, फूलगोभी, गांठगोभी, चाईनीज सरसों, बन्दगोभी, प्याज इत्यादि पौध उगाकर तैयार किए जाते है| अत: पौध का स्वस्थ होना आवश्यक है| निम्नलिखित तकनीक के प्रयोग से विभिन्न सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार की जाती है|

पौधशाला की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ होने चाहिए| साधारणतय: क्यारी तीन मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी तथा 15 सैं.मी. ऊंची होनी चाहिए| क्यारी की लम्बाई आवश्यकतानुसार घटाई जा सकती है| परन्तु चौड़ाई एक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए|

इस आकार की क्यारियों से खरपतवार निकालने तथा कृषि कार्यों को सम्पन्न करने की सुविधा मिलती है| एक हैक्टेयर में पौध के लिए क्यारियों की संख्या आदि का विवरण इस प्रकार है:

क्रमांक

फसल

क्यारियों की संख्या

बीज मात्रा, प्रति क्यारी (ग्राम)

1. टमाटर 10 40 – 50
2. बैंगन 15 35 – 40
3. शिमला मिर्च 12 115 – 120
4. मिर्च 8 125 – 150
5. (क) फूलगोभी अगेती व मध्यम 10 70 – 75
6. (ख) फूलगोभी पिछेती 10 40 – 50
7. बन्दगोभी 10 70 – 75
8. चाइनीज सरसों 16 50 – 60
9. गांठ गोभी 25 50 – 55
10 प्याज 60 175 – 200
11 लैट्यूस 10 40 – 50
  1. 3 मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी तथा 15 सैं.मी. ऊँची क्यारी में 20 से 25 किलोग्राम खूब गली सड़ी गोबर की खाद, तथा 100 ग्राम इक्को मिश्रण खाद डालें और 15-20 ग्राम फफूंदनाशक इंडोफिल एम – 45 घोल और कीट नाशक जैसे क्लोरपाईरिफास मिला लेनी चाहिए|
  2. बीज को बोने से पूर्व फफूंदनाशक दवाई जैसे कैप्टान / बैविस्टीन 2 -3 ग्राम प्रति किलो ग्राम के हिसाब से उपचारित करें|
  3. बीज को पंक्तियों में 5 सैं.मी. की दूरी पर लगाकर गोबर की खाद या मिट्टी की पतली तह से ढक दें|
  4. क्यारी को सूखी घास या पोलीथीन की चादर से ढक दें|
  5. ग्रीष्म ऋतु में प्रात: और सायं क्यारियों की सिंचाई करें जबकि शीत ऋतु में एक ही बार| क्यारियों में नमी कम होनी चाहिए, अधिक नमी होने पर कमरतोड़ रोग लग जाता है| बीज की क्यारी में अधिक घना तथा छट्टे से नहीं बीजना चाहिए जिससे बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है|
  6. जब तक पौधे स्थापित न हो जाएं, प्रतिदिन सिंचाई करें|
  7. बीज का अंकुरण होने पर पोलीथीन की चादर उठा दें| यदि आवश्यक हो तो शीत ऋतु में रात्रि को पौध को इससे ढक दें|
  8. कमरतोड़ रोग के आने पर पौधों पर 0.25% इंडोफिल एम - 45 घोल द्वारा सिंचाई करें|
  9. जब पौधे 8 – 10 सैं.मी. ऊंचे हो जायें तो 0.3% यूरिया के घोल का छिड़काव करें, जिससे पौधे स्वस्थ रहते है|
  10. हर सप्ताह खरपतवार निकालें तथा हल्की सी गुड़ाई करें|
  11. अवांछनीय पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें|
  12. चार से छ: सप्ताह में पौधे 12 से 15 सैं.मी. ऊंचे हो जाते है तथा रोपने योग्य हो जाते हैं|
  13. पौधों को उखाड़ने से 3 – 4 दिन पूर्व सिंचाई न करें परन्तु पौधे उखाड़ने वाले दिन सिंचाई करने के एक घंटा बाद ही पौधे को उखाड़े|
  14. सवस्थ पौध का रोपण दोपहर बाद करें| रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर दें|
  15. सब्जियों की संकर किस्मों का बीज हर साल नया खरीदें|
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Visitor No.: 08894441   Last Updated: 13 Jan 2016