डेयरी वैंचर केपिटल फण्ड (दूध गंगा परियोजना)सितम्बर, 2010 इस परियोजना के आर्थिक सहायता के सवरूप में बदलाव लेन के साथ नया नाम डेयरी एंट्रप्रेन्यूरशिप डेवलपमेंट स्कीम (DEDS) रखा गया है | जिसमे ब्याज युक्त ऋण के बदले उपदान देने की व्यवस्था है | इस परियोजना के तहत निम्नलिखित प्रावधान किए गये हैं |
परियोजनाएँ |
परियोजना खर्च |
1. 2 से 10 दुधारू पशुओं के लिए ऋण |
रु० 05.00 लाख |
2. 5 से 20 के बछडियो पालन हेतू ऋण |
रु० 4.80 लाख |
3. वर्मी कम्पोस्ट (दुधारू गायों के इकाई के साथ जुड़ा होगा) |
रु० 0.20 लाख |
4. दूध दोहने की मशीन/मिल्कोटैस्टर/ बड़े दूध कूलर इकाई (2000 लीटर तक) |
रु० 18.00 लाख |
5. दूध से देसी उत्पाद बनाने की इकाइयाँ |
रु० 12.00 लाख |
6. दूध उत्पादों की ढुलाई तथा कोल्ड चैन सुविधा हेतु ऋण |
रु० 24.00 लाख |
7. दूध व् दूध उत्पादों के शीत भण्डारण हेतू |
रु० 30.00 लाख |
8. निजी पशु चिकित्सा इकाइयों के लिए ऋण |
(क) मोबाइल इकाई |
रु० 2.40 लाख |
(ख) स्थाई इकाई |
रु० 1.80 लाख |
9. दूध उत्पाद बेचने हेतू बूथ स्थापना |
रु० 0.56 लाख |
- इस योजना में सामान्य वर्ग के लिए 25% तथा अनुसूचित जाती व् अनुसूचित जनजाति के पशुपालकों को ऋण पर 33.33% अनुदान अन्त में समायोजित करने का प्रावधान है |
- इस योजना का व्यक्ति विशेष स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संगठन, दुग्ध संगठन, दुग्ध सहकारी सभाएं, तथा कम्पनियां इत्यादि लाभ उठा सकती है |
- इस परिवार के एक से ज्यादा सदस्य भी इस योजना के अंतर्गत अलग-अलग इकाइयाँ अलग-अलग स्थानों पर स्थापित कर इस योजना का लाभ उठा सकते हैं बशर्ते उन के द्वारा स्थापित इकाइयों की आपस की दूरी कम से कम 500 मीटर की हो |
- उपरोक्त सभी मदों पर ऋणदाता को कुल ऋण की 10 प्रतिशत सीमान्त राशी अग्रिम रूप में सम्बंधित बैंक में जमा करवाई जाती है |
- दुग्ध गंगा परियोजना का कार्यन्वयन नाबार्ड के सौजन्य से राष्ट्रीयकृत बैंकों व् राज्य सहकारी बैंकों के माध्यम से पशुपालन विभाग के साथ मिल कर चलाया जा रहा है |
- स्कीम के मुख्य उदेश्य :-
- स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए आधुनिक डेयरी फार्म तैयार करना |
- उत्तम नस्ल के दुधारू पशुओं को तैयार करने तथा उनके संरक्षण हेतु बछड़ी पालन को प्रोत्साहन देना |
- असंगठित क्षेत्र में आधारभूत बदलाव लाकर दूध के आरंभिक उत्पादों को गाँव स्टार पर ही तैयार करवाना |
- दूध उत्पादन के परम्परागत तरीकों को उन्नत कर व्यावसायिक स्तर पर लाना |
- स्वरोजगार उत्पन्न करना तथा असंगठित डेरी क्षेत्र को मूलाधार सुविधा देना |
दुग्ध उधमी उत्थान योजना (दूध गंगा परियोजना) का स्वरूप सितम्बर 2010 में बदलने के बाद से मार्च 2013 तक कुल 5137 मामले नाबार्ड द्वारा स्वीकृत किये गये तथा 23157 दुधारू पशु ख़रीदे गये जिसमें 27.29 करोड़ रूपये उपदान के रूप में स्वीकृत किये गये |
इस योजना को फंड्स की कमी के कारण पिछले वर्ष जून 2012 से इस वर्ष मई 2013तक स्थगन रूप में रखा गया था | मात्र लंबित मामलों का ही निपटारा किया जा रहा था |मई 2013 के अंतिम सप्ताह में भारत सरकार द्वारा इस योजना में 12 करोड़ की राशि उपलब्ध करवाए जाने पर, शर्तों के मुताबिक 1 जून 2013 से 15 जुलाई 2013 तक इस योजना को पुनः चालू किया गया | जिसमें नये ऋण मामलों को ही मंजूर करने का प्रावधान था |