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कृत्रिम गर्भाधान के लाभ व सीमायें
गर्भाधान के लाभ
प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृ०ग० के अनेक लाभ हैं जिनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखित है:-
(1) कृत्रिम गर्भाधान तकनीक द्वारा श्रेष्ठ गुणों वाले सांड को अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकता है| प्राकृतिक विधि में एक सांड द्वारा एक वर्ष में 50-60 गाय या भैंस को गर्भित किया जा सकता है जबकि कृ०ग० विधि द्वारा एक सांड के वीर्य से एक वर्ष में हजारों की संख्या में गायों या भैंसों को गर्भित किया जा सकता है|
(2) इस विधि में धन एवं श्रम की बचत होती हसी क्योंकि पशु पालक कोसांड पालने की आवश्यकता नहीं होती|
(3) कृ०ग० में बहुत दूर यहां तक कि विदेशों में रखे उत्तम नस्ल व गुणों वाले सांड के वीर्य को भी गाय व भैंसों में प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है|
(4) अत्योत्तम सांड के वीर्य को उसकी मृत्यु के बाद भी प्रयोग किया जा सकता है|
(5) इस विधि में उत्तम गुणों वाले बूढ़े या घायल सांड का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है|
(6) कृ०ग० में सांड के आकार या भर का मादा के गर्भाधान के समय कोई फर्क नहीं पड़ता|
(7) इस विधि में विकलांग गायों/भैंसों का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है|
(8) कृ०ग० विधि में नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है|
(9) इस विधि में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है जिससे मादा की प्रजनन की बीमारियों में काफी हद तक कमी आ जाती है तथा गर्भधारण करने की डर भी बढ़ जाती है|
(10)इस विधि में पशु का प्रजनन रिकार्ड रखने में भी आसानी होती है|
कृत्रिम गर्भाधान विधि की सीमायें:
कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ होने के बावजूद इस विधि की अपनी कुछ सीमायें है जो मुख्यत: निम्न प्रकार है|
(1) कृ०ग० के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति अथवा पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है तथा कृ०ग० तक्नीशियन को मादा पशु प्रजनन अंगों की जानकारी होना आवश्यक है|
(2) इस विधि में विशेष यंत्रों कीआवश्यकता होती है|
(3) इस विधि में असावधानी वरतने तथा सफाई का विशेष ध्यान ण रखने से गर्भ धारण की दर में कमी आ जाती है|
(4) इस विधि में यदि पूर्ण सावधानी न वरती जाये तो दूर वर्ती क्षेत्रों आठवा विदेशों से वीर्य के साथ कई संक्रमक बीमारियों के आने का भी भय रहता है|
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