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बधियाकरण
बधियाकरण के लाभ:
नर पशु के दोनों अण् कोशों अथवा मादा के दोनों अंडाशयों को निकालकर उसे नपुंसक बनाने की क्रिया को बधियाकरण कहते हैं| उन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए अवांक्षित नर पशुओं का बधियाकरण बहुत ही आवश्यक कार्य जिसके बिना डेयरी पशुओं की नस्ल में सुधार करना असम्भव हैं| बछड़ों में बधियाकरण की उचित आयु 2 से 8 माह के बीच होती हैं|
(1) बधियाकरण द्वारा निम्न स्तर के पशु के वंश को आगे बढने से रोका जा सकता है जिससे उसके द्वारा असक्षम एवं अवांक्षित सन्तान पैदा ही नहीं होती जोकि सफल एवं लाभकारी पशुपालन के लिए आवश्यक है|
(2) बधिया किए गये नर पशु को मादा पशुओं के साथ बिना किसी कठिनाई के रखा जा सकता है क्योंकि वह मद में आई मादा के ऊपर नहीं चढता|
(3) बधिया किए गये पशु को आसानी से नियन्त्रित किया जा सकता है|
(4) बधियाकरण से मांस के लिये प्रयोग होने वाले पशुओं के मांस की गुणवत्ता बढ़ जाती है|
बधियाकरण की विधियाँ:
पालतू पशुओं में बधियाकरण सबसे पुरानी शल्य क्रिया समझी जाती है|बधियाकरण निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है|
(क) शल्य क्रिया द्वारा बधियाकरण
इस विधि में शल्य क्रिया द्वारा अंडकोषों के ऊपर चढ़ी चमड़ी (स्क्रोटम) को काटकर दोनों अंडकोषों को निकाल दिया जाता है| इस क्रिया में में पशु के एक छोटा सा घाव हो जाता है जोकि एंटीसेप्टिक दवाईयों के प्रयोग करके कुछ समय के पश्चात ठीक हो जाता है|
(ख) बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरणल:
यह विधि आज-कल नर गोपशुओं व भेंसों में बधियाकरण के लिये सर्वाधिक प्रचलित है| इसमें एक विशेष प्रकार का यंत्र जिसे बर्डिजो कास्ट्रेटर कहते हैं प्रयोग किया जाता है| इस विधि में रक्त बिल्कुल भी नहीं निकलता क्योंकि इसमें चमड़ी को कटा नहीं जाता| इसमें पशु के अंड कोशों से ऊपर की और जुडी स्पर्मेटिक कोर्ड जिकी चमड़ी के नीचे स्थित होती है, को इस यन्त्र के द्वारा बाहर से दबा कर कुचल दिया जाता है जिससे अंडकोषों में खून का दौरा बन्द हो जाता है|फलस्वरूप अंडकोष स्वत:ही सुख जाते हैं|
बर्डिजो कास्ट्रेटर द्वारा बधियाकरण करते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतना आवश्यक है|
1.बर्डिजो कास्ट्रेटर को दबाते समय स्पर्मेटिक कोड स्लिप नहीं करनी चाहिए|
2.कास्ट्रेटर में अंडकोष नहीं दबाना चाहिये अन्यथा अंडकोषों में भारी सूजन आ जाती है जिससे पशु को तकलीफ होती है|
3.कास्ट्रेटर में चमड़ी का फोल्ड नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे चमड़ी के नीचे घाव होने का खतरा रहता है|
4.कास्ट्रेटर को प्रयोग करने से पहले ठीक प्रकार से साफ कर लेना चाहिए|
(ग) रबड़ के छल्ले द्वारा बधियाकरण:
पश्चिमी देशों में प्रचलित यह विधि बहुत छोटी उम्र के बछड़ों में प्रयोग की जाती है| इसमें रबड़ का एक मजबूत व लचीला छल्ला अंड कोषों के ऊपरी भाग स्थित स्परमेतिक कोर्ड के ऊपर चढा दिया जाता है जीके दबाव से अंडकोषों में खून का दौरा बन्द हो जाता है| इससे अंडकोष सुख जाते हैं तथा रबड़ का छल्ला अंडकोषों से निकल कर नीचे गिर जाता है| |
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