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अंगोरा खरगोश पालन




अंगोरा खरगोश पालन


हिमाचल प्रदेश की जलवायु अंगोरा खरगोश पालन हेतु अनुकूल है| अंगोरा पालन प्रदेश के कृषकों व बेरोजगार युवक/युवतियों द्वारा अपनाया जा रहा है| आरंभ में खरगोश प्रजनन फार्म नगवाई(ज़िला मण्डी) में 1984 में स्थापित किया गया था| इसके पश्चात पालमपुर में संन 1986 में दूसरे खरगोश प्रजनन प्रक्षेत्र खोला गया| इन प्रक्षेत्रों में जर्मन अंगोरा खरगोश रखे जाते हैं| अंगोरा खरगोश की ऊन मुलायम और बारीक होती है, जिसकी बाज़ार में अच्छी कीमत मिलती है| अंगोरा खरगोश पालन के इच्छुक व्यक्तियों को विभागीय प्रक्षेत्रों पर प्रशिक्षण प्रदान करवाया जाता है|


अंगोरा खरगोश पालन प्रारम्भ करने से पहले इसके बारे में जानकारी होना आवश्यक है जो इस प्रकार है:-


  1. अंगोरा खरगोश तक शाकाहारी जीव है| इससे सम्बंधित कुछ मापदण्ड इस प्रकार है:- 

    औसत उमर 6-8 वर्ष
    औसत शारीरिक तापमान 39 डिग्री सै०ग्रे०
    वयस्क होने की उमर 5 से 6 महीने
    प्रजन्न चक्र अवस्था लगातार वर्ष भर
    गर्भावस्था 31-32 दिन
    औसत बच्च 6 से 8 प्रति ब्यांत


  2. खरगोश पालन क्यों

    1. अत्यधिक सन्तति उत्पादन के कारण मासॅ व ऊन उत्पादन प्रति खरगोश सभी पालतू जीवों से अधिक है|


    2. यह जीव शोर व कोलाहल नहीं करता|


    3. इसकी ऊन बहुत बारिक व मुलायम होती है और इसकी ऊन की ताप अवरोधक शक्ति भेड़ की ऊन से लगभग तीन गुण होती है| इस कारण यह ज्यादा दाम पाती है|


  3. रख-रखाव

    1. जलवायु:- 

      1. यद्यपि अंगोरा खरगोश 7 डिग्री से 28 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान में पाले जा सकतें है परंतु 20 डिगरी सैंटीग्रेड पर इनकी उत्पादन क्षमता यचचतम रहती है| बहुत अधिक तापमान में इनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है| तथा न्यून पर इनके फीड खाने की मात्रा बढ़ जाती है जिससे आर्थिक दृष्टि से हनी होती है|


      2. खरगोशों के लिए 70 प्रतिशत आपेक्षित आर्द्रता उचित रहती है|


      3. बेहतर प्रजनन के लिए दिन में 16 घन्टे प्रकाश की आवश्यकता होती है|


    2. भवन व पिंजरे:-

      1. जंगली अवस्था में खरगोश बिल खोदकर रहते है| लेकिन पालतू अवस्था में उन्हें अकेले अकेले पिंजरों में खा जाता है|


      2. अंगोरा खरगोश को रखने के लिए भवनों का निर्माण इस ढंग से किया जाना चाहिए जहां यह बाहरी प्रभावों जैसे सूर्य की तेज़ सीधी रौशनी, खराब मौसम व अवांछित शोर से बचे रहें|


      3. खिड़कियों तथा रौश्न्दानों पर जाली लगी हो ताकि कीड़े-मकौड़े पक्षी, चूहे, नेवले इत्यादि अन्दर न आने पायें|


      4. भवन में वायु का प्रभावशाली आवागमन हो|


      5. खरगोशों को गैलवेनाईजड़ आयरन वैलडड वायरमैश से बने पिंजरों में रखा जाता है| एक पिंजरों में एक खरगोश रखा जाता है| पिंजरे में आहार तथा पानी के बर्तन इस ढंग से लगाए जाते है कि विभिन्न आयु वर्ग के जानवरों को आहार लेने व पानी पीने की सुविधा रहें|


    3. पिंजरे का आकार:-

      प्रजनन योग्य खरगोशों के लिए    -60X60X60 सैंटीमीटर 

      अन्य खरगोशों के लिए             -60X40X35 सैंटीमीटर

      बच्चे देने वाली मादाओं के पिंजरे के साथ प्रसव सर 5 दिन पहले नैस्ट वाक्स लगाए जाते है जो लक्षि या प्लाईवुड के बने हों नैस्ट वाक्स का आकार 36X 36X30 सैंटीमीटर होता है|


  4. खरगोशों के लिए आहार:- 

    खरगोश शाकाहारी जीव है और घास इसका महत्वपूर्ण आहार है| यह सूखी हरी घास व हरी प्त्तियां जैसे ब्यूल; कर्याल; तिम्बल; शह्तूट आदि पौधों की पत्तियां पसंद करता है| घास में ढूब; लूसरन; कलोवर;बरसीम; पालक आदि खूब चाव से खाता है इसके अतिरिक्त शलजम; गाजर; चुकन्दर; गोभी; बंद गोभी आदि भी इसके मनचाहे खाद्य पदार्थ है|

    अंगोरा खरगोशों को आहार “पैलेटज” के रूप में दिया जाता है| औसत एक खरगोश प्रतिदिन 150-175 ग्राम आहार लेता है| गर्भवती एवं बच्चे दिए हुई मादा के आहार में 100 ग्राम दैनिक वृद्धि हो जाती है| इसके अतिरिक्त 80-100 ग्राम हरी घास व हरी सब्जियां भी देनी चाहिए| एक खरगोश दिन में लगभग 350 मिलीलिटर पानी पीता है|

  5. प्रजनन:-

    केवल स्वस्थ व रोग मुक्त खरगोशों से ही प्रजनन करवाया जाना चाहिए| अंगोरा खरगोश 5-6 माह की आयु में; जब इनका भार लगभग 3 किलोग्राम हो जाए; प्रजनन योग्य हो जाते है| उतेजित अवस्था में मादा की योनी लाल हो जाती है व अपनी ठोढी पिंजरे में मलती हुई पूंछ को खूब हिलाती है| प्रजनन दो से करवाया जाता है| 

    1. प्रकृतिक गर्भधान:-
      इसमें मादा खरगोश को नर खरगोश के पिंजरे में ले जाते हैं समागम का ठीक व उचित समय सायं का रहता है| समागम के अंत में वह एक विशेष आवाज़ निकालता है| प्रकृतिक गर्भधान के पश्चात मादा को वापिस अपने पिंजरे में छोड़ दिया जाता है|

    2. कृत्रिम गर्भधान:-
      इसमें कृत्रिम वैजाईना की सहायता में वीर्य एकत्रित करके, उसे दूध से पतला किया जाता है तथा इसका एक मी.ली. प्रत्येक प्रजनन योग्य मादा खरगोश की योनी में छिड़काव किया जाता है|

    गर्भधान के 14 दिन के बाद गर्भ हेतु जांच की जाती है| यदि गर्भधारन न हुआ हो तो दोबारा से मादा को नर के पास ले जा कर समागम करवाया जाता है| गर्भ के 25वें दिन नैस्टबाक्स लगा दिए जाते है| गर्भित मादा की विशेष देखभाल की जानी चाहिए| गर्भित मादा 31वें दिन बच्चे देती है| बच्चे जनने के तुरंत बाद माँ बच्चों को दूध पिलाने लगती है| जब खरगोश के बच्चों का जन्म होता है उनके शरीर पर बाल नहीं होते फैन; रंग लाल और आंखें बंद होती है| तापमान को सामान्य रखने के लिए उन्हें एक ही स्थान पर रखना आवश्यक होता है| मादा अपने बच्चों को चौबीस घण्टों में एक ही बार लगभग 5-7 मिनट तक ही दूध पिलाती है और यदि कोई बच्चा दूध पीने से रह जाए तो वह अत्यंत कमज़ोर हो जाता है| जन्म से 11-12 दिन में वह चुस्त और फुरतीले हो जाते है और हरी घास/पैलेट; दाने को मुंह मारने लगते है| लगभग 4-5 सप्ताह की आयु होने पर इन बच्चों को माँ से अलग कर दिया जाता है| इसे वीनिंग कहते है| अंगोरा खरगोश से वर्ष में 5-6 बार बच्चे लिए जा सकते हैं तथा प्रत्येक बार औसतन 6 बच्चे उत्पन्न होते है|


  6. ऊन उत्पादन:-

    अंगोरा खरगोश मुख्यत: अपनी बहतरीन ऊन के लिए पाले जाते है| एक वयस्क खरगोश से वर्ष में 4 बार ऊन उतारी जाती है औसतन एक खरगोश 200 से 250 ग्राम ऊन देता है| पहली ऊन की कटाई खरगोश की 60 दिन की उमर पर कर देनी चाहिए लेकिन दिसंबर ; जनवरी में सर्दी के मौसम में ऊन नहीं काटनी चाहिए|


  7. सामान्य बिमारियाँ एवं उनकी रोकथाम:-

    खरगोशों में पाई जाने वाली मुख्य बिमारियाँ इस प्रकार है:- 

    कक्सीडियोसिस: टलारीमिया; मयुकोएड एंटरोपैथी; स्नफलज; न्यूमोनिया; आँख आना; रिंग वर्म; माईट; फोड़े हेयर बाल; केनीबालीज़म इत्यादि|

    रोगों की रोकथम के लिए पिंजरों; आहार व पानी के बर्तनों व अन्य उपयोग में आने वाले उपकरणों को समय पर कीटाणु रहित करना चाहिए|

  8. लाभकारिता:-

    किसी भी अंगोरा कक्सीडियोसिस: इकाई का लाभप्रद होना मुख्यता ऊन उत्पादन; ऊन की कीमत तथा आहार के मूल्य पर निर्भर करती है| ऊन का विक्रय ही आय का मुख्य स्त्रोत है| ऊन के इलावा इनकी खालें; मासॅ तथा युवा खरगोशों के विक्रय से भी आय में वृद्धि होती है| अंगोरा खरगोश इकाईयों को आर्थिक दृष्टि से जीवित रखने तथा खरगोशों की ऊन उत्पादन क्षमता को बनाए रखने हेतु बढिया स्टाकॅ का चयन करना व कम उत्पादन वाले खरगोशों का नियमित रूप से निष्कासन अति आवश्यक है|

  9. कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें:-

    1. खरगोश को पकड़ने व उठाने में विशेष ध्यान देना चाहिए| खरगोश को ऊपर से हाथ को कन्धे पर रख कर दोनों तरफ चमड़ी को पकड़ कर तथा दूर हाथ पेट के नीचे पिछले भाग में रख कर उठाया जाता है| कभी भी खरगोश को कां व टांगों से नहीं उठाना चाहिए|

    2. कौपरोफेजी:- खरगोश अपनी मेंगनों का एक भाग दोबारा खा जाता है| यह सामान्य बात है| यह मेंगने आम तौर पर दो प्रकार की करता है जो मेंगने नरम हल्की हरी सी होती है उन्हें वापिस खा जाता है( ऐसा करने से आमतौर पर रात को याँ सुबह के समय होता है) खरगोश बैकटीरियल पाचन का पूरा फायदा उठाता है जो मेंगने दिन में करता है वह मामूली मटियाली और सख्त होती है उन्हें वै नहीं खता|

    3. अंगोरा खरगोश को लूसीनिया; रोबीनिया की पत्तियां कभीं खिलाएं| यह इसके लिए हानिकारक होती है|

    4. अंगोरा खरगोश नाज़ुक व डररपोक जानवर है| इस के आसपास विस्फोट; शोरगुल आदि उत्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालते हैं|

    5. अंगोरा इकाई छोटे रूप से; जैसे 1+4 या 2+8 से शुरू करें और अपनी क्षमता व तजुर्बे के आधार पर बढाऐं|


    6. अंगोरा इकाई का नियमित आंकालन आवश्यक है ताकि सुधार लाया जा सके और मालूम हो कि किन किन कारणों से लाभ में कमी आ रही है|

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Visitor No.: 10814791   Last Updated: 06 May 2023