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भेड़ पालन

भेड़ पालन-कुछ महत्वपूर्ण जानकारी


भेड़ का मनुष्य से सम्बन्ध आदि काल से है तथा भेड़ पालन हिमाचल के जन-जातीय क्षेत्रों के निवासियों का एक प्राचीन व्यवसाय है| प्राचीन समय से ही किन्नौर, लाहौल-स्पिति, भरमौर, पांगी, कांगडा तथा मण्डी के जन-जातीय क्षेत्र के लोग मुख्यत: भेड़ पालन पर निर्भर रहें है| भेड़ पालक भेड़ से ऊन तथा मांस तो प्राप्त करता ही है, भेड़ की खाद भूमि को भी अधिक ऊपजाऊ बनाती है| भेड़ कृषि अयोग्य भूमि में चरती है, कई खरपतवार आदि अनावश्यक घासों का उपयोग करती है तथा उंचाई पर स्थित चरागाह जोकि अन्य पशुओं के अयोग्य है, उसका उपयोग करती है| भेड़ पालक भेड़ों से प्रति वर्ष मेमने प्राप्त करते है| 

हिमाचल प्रदेश में लगभग 9 लाख भेड़ों कई आबादी है| प्रदेश में शुद्ध विदेशी नस्लों क्रमश| रैमबुले तथा रशीयन मैरिनो के मेढों द्वारा स्थानीय नस्ल की भेड़ों का प्रजनन करवाया जाता है ताकि स्थानीय नस्ल कई भेड़ों कई ऊन की मात्रा प्रति भेड़ बढाई जा सके| जहाँ सुधारी नस्ल कई भेड़ों से 2.5 किलोग्राम प्रति भेड़ ऊन प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर स्थानीय नस्लों रामपुर बुशहरी व गद्दी से 1 किलोग्राम से भी कम ऊन प्राप्त होती है| 

प्रदेश सरकार द्वारा दभेड़ प्रजनन कार्यक्रम के अन्तर्गत चार भेड़ प्रजनन फार्म व एक मेढों केन्द्र निम्न स्थानों पर खोले गये हैं:-

  1. ज्यूरी ज़िला शिमला (रैमबुले व रामपुर बुशहरी भेडें)

  2. कडछम, ज़िला किन्नौर (रशीयन मैरिनों भेडें)

  3. सरोल ज़िला चम्बा (रैमबुले भेड़)

  4. ताल ज़िला हमीरपुर (रैमबुले, रशियन मैरिनों,गद्दी व गद्दी कास)

  5. मेंढा केन्द्र नगवाई ज़िला मण्डी



विभाग के 4 भेड़ प्रजनन फार्मों से स्थानीय नस्लें की भेड़ों के नस्ल सुधार हेतु भेड़ पालकों को विदेशी नस्लों के मेढे विक्रय किये जाते है ताकि भेड़ पालकों की स्थानीय भेड़ की नस्ल में सुधार लाकर उनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत हो सके| मेंढा केन्द्र नगवाई से प्रजनन ऋतु में विदेशी नस्ल के मेंढे भेड़ पालकों को प्रजनन करवाने हेतु उपलब्ध करवाये जाते है| प्रजनन काल के समाप्त होते ही यह मेढे वापिस मेढा केन्द्र में लाये जाते है ताकि भेड़ पालकों को वर्ष भर मेढे पलने का खर्च न वहन करना पड़े|


भेड प्रजनन नीति:-



प्रदेश में भेड़ो से अधिक आय प्राप्त करने व उनकी नस्ल सुधार हेतू विभाग द्वारा भेड़ प्रजनन नीति तैयार की गई है इस नीति के अनुसार स्थानीय गद्दी व रामपुर बुशैहरी नस्ल की भेड़ों का शुद्ध विदेशी रैम्बुले या रशियन मरीनो मैंढों से प्रजनन करवाया जाता है| इस प्रजनन के फलस्वरूप पैदा हुई संतान में 50 प्रतिशत गुण देशी नस्ल के तथा 50 प्रतिशत गुण देशी नस्ल के आते है तथा इसे एफ-1 जनरेशन खा जाता है| इन एफ-1 जनरेशन की भेड़ों का फिर से शुद्ध विदेशी रैम्बुले या रशियन मरीनो मैंढ़ों से प्रजनन करवाया जाता है| इस प्रजनन के फलस्वरूप पैदा हुई संतान में 25 प्रतिशत गुण देशी नस्ल के तथा 75 प्रतिशत गुण विदेशी नस्ल के आते तथा इसे एफ-2 जनरेशन खा जाता है| इस प्रक्रिया से निरंतर पैदा हो रही एफ-2 जनरेशन की भेड़ों का प्रजनन करवाने के लिए ऐसे मेंढे जिनमें 75 प्रतिशत गुण विदेशी नस्ल तथा 25 प्रतिशत गुण देशी नस्ल के हों का ही प्रयोग करना चाहिए ताकि पैदा होने वाली संतान में विदेशी नस्ल के 75 प्रतिशत गुण कायम रह सकें|


भेड़ पालन व्यवसाय को अधिक लाभदायक बनाने के लिये कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्रजनन सम्बन्धी:-

  • भेड़ आम तौर पर नौ महीने की आयु में पूर्ण वयस्क हो जाती है किन्तु स्वस्थ मेमने लेने के लिये यह आवश्यक है कि उसे एक वर्ष का होने के पश्चात ही गर्भधारण कराया जाए| भेड़ों में प्रजनन आठ वर्ष तक होता है| गर्भवस्था औसतन 147 दिन कि होती है|

  • भेड़ 17 दिन के बाद 30 घण्टे के लिये गर्मी में आती है| गर्मी के अंतिम समय में मेंढे से सम्पर्क करवाने पर गर्भधारन की अच्छी सम्भावनायें होती है|

  • गर्भवस्था तथा उसके पश्चात जब तक मेमने दूध पीते है भेड़ के पालन पोषण पर अधिक ध्यान देना चाहिये| एक मादा भेड़ को गर्भवस्था तथा उसके कुछ समय पश्चात तक संतुलित एवं पोष्टिक आहार अन्य भेड़ों की अपेक्षा अधिक देना चाहिये|

  • भेड़ों को मिलते बार नर या मादा का अनुपात 1:40 से अधिक नहीं होना चाहिये|प्रजनन हेतु छोड़ने के दो माह पूर्व से ही उनके आहार पर विशेष ध्यान दें| इस अवधि में संतुलित आहार तथा दाने की मात्रा भी बढा दें|

  • प्रजनन हेतु छोड़ने से पहले यह बात अवश्य देख लें कि मेंढे के बहय जननेन्द्रियों की ऊन काट ली गई है तथा उसके खुर भी काट क्र ठीक क्र लिये गये है|
  • नर मेमनों कि डेढ़ साल से पहले प्रजनन के लिये उपयोग न् करें| तथा समय समय पर उनकी जननेन्द्रिया की जानच कर लें| यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि वयस्क मेढों को तरुण भेड़ों के साथ प्रजनन के लिये छोड़ना चाहिये|

  • मेढों को प्रजनन के लिये छोड़ने से पहले यह निश्चित क्र लें कि उन्हें उस क्षेत्र में पाई जाने वाली संक्रामक बिमारियों के टीके लगा दिये गये है तथा उनको कृमिनाशक औषधि से नहलाया जा चूका है| मैंढ़े को प्रजनन के लिये अधिक से अधिक आठ सप्ताह तक छोड़ना चाहिये तथा निश्चित अवधि के पश्चात उन्हें रेवड़ से अलग क्र देना चाहिये|

  • यदि एक से अधिक मेंढे प्रजनन हेतु छोडने हैं तो नर मेढों कई कोई निश्चित पहचान (कान पर नम्बर) लगा दें ताकि बाद में यह पता चल सके कि किस नर की प्रजनन शक्ति कमज़ोर है या उससे उत्पादित मेमनें सन्तोषजनक नहीं है ताकि समय अनुसार उस नर को बदला जा सके| मेढों को यदि रात को प्रजनन के लिये छोड़ना है तो उनके पेट पर नाभि के पास कोई गीला रंग लगा दें जिससे यह पता चल सके कि किस मैंढ़े से कितनी भेडों में प्रकृतिक गर्भधान हुआ है|

  • मेंढ़े का नस्ल के अनुसार कद व शारीरिक गठन उत्तम होना चाहिये| टेड़े खुर उठा हुआ कंधा, नीची कमर आदि नहीं होनी चाहिये|

  • पैदा होने के 8-12 सप्ताह के पश्चात मेमनों को माँ से अलग कर लें तथा तत्पश्चात उसको संतुलित आहार देना प्रारम्भ करें|

  • संकर एवं विदेशी नस्ल के मेमनों के पैदा होने के एक से तीन सप्ताह के अन्दर उसकी पूंछ काट लें|

  • समय समय पर यह सुनिश्चित करें कि तरुण भेड़ का वजन कम तो नहीं हो रहा है| इस अवधि में उसको अधिक से अधिक हर घास उपलब्ध करवायें|

  • अनुपयोगी और निम्न स्तर के पशुओं की प्रतिवर्ष छंटनी कर देनी चाहिये अनयथा उनके पालने का खर्च बढ़ेगा| भेड़ों की छंटनी अधिक से अधिक 1.5 वर्ष में करनी चाहिए| ऊन काटने या प्रजनन के समय से इस आयु तक उनका शारीरिक विकास पूर्ण हो जाता है|




भेड़-बकरियों में रोग



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Visitor No.: 10814949   Last Updated: 06 May 2023