घरपरिचयनौकरी प्रोफाइलबजटक्रियाएँउपलब्धियांगैलरीसाइटमैपG2G Loginमुख्य पृष्ठ     View in English    
  मोबाइल पशु चिकित्सा एम्बुलेंस के माध्यम से घरद्वार पर आपातकालीन निःशुल्क पशु चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, 1962 (टोल फ्री) पर संपर्क करें।    
मुख्य मेन्यू
संगठनात्मक व्यवस्था
सामान्य सूचना
संस्थान का विवरण
विभागीय फार्म
सूचना का अधिकार (आरटीआई)
स्टाफ स्थिति
टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी
शिकायत प्रकोष्ठ
भर्ती एवं पदोन्नति नियम
निविदा सूचना
हि० प्र० स्टेट वेटनरी कौंसिल
हि० प्र० पैरा- वेटनरी कौंसिल
राज्य पशु कल्याण बोर्ड
अन्य मुख्य लिंक्स
विभागीय लोगो
हि० प्र० गौसेवा आयोग
सब्सिडी योजनाओं के लिए आवेदन करें
लम्पी चमड़ी रोग
हमसे सम्पर्क करें
अध्याय-10


कृत्रिम गर्भाधान के लाभ व सीमायें


गर्भाधान के लाभ


प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृ०ग० के अनेक लाभ हैं जिनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखित है:-
(1) कृत्रिम गर्भाधान तकनीक द्वारा श्रेष्ठ गुणों वाले सांड को अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकता है| प्राकृतिक विधि में एक सांड द्वारा एक वर्ष में 50-60 गाय या भैंस को गर्भित किया जा सकता है जबकि कृ०ग० विधि द्वारा एक सांड के वीर्य से एक वर्ष में हजारों की संख्या में गायों या भैंसों को गर्भित किया जा सकता है|
(2) इस विधि में धन एवं श्रम की बचत होती हसी क्योंकि पशु पालक कोसांड पालने की आवश्यकता नहीं होती|
(3) कृ०ग० में बहुत दूर यहां तक कि विदेशों में रखे उत्तम नस्ल व गुणों वाले सांड के वीर्य को भी गाय व भैंसों में प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है|
(4) अत्योत्तम सांड के वीर्य को उसकी मृत्यु के बाद भी प्रयोग किया जा सकता है|
(5) इस विधि में उत्तम गुणों वाले बूढ़े या घायल सांड का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है|
(6) कृ०ग० में सांड के आकार या भर का मादा के गर्भाधान के समय कोई फर्क नहीं पड़ता|
(7) इस विधि में विकलांग गायों/भैंसों का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है| 
(8) कृ०ग० विधि में नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है|
(9) इस विधि में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है जिससे मादा की प्रजनन की बीमारियों में काफी हद तक कमी आ जाती है तथा गर्भधारण करने की डर भी बढ़ जाती है|
(10)इस विधि में पशु का प्रजनन रिकार्ड रखने में भी आसानी होती है|

कृत्रिम गर्भाधान विधि की सीमायें:


कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ होने के बावजूद इस विधि की अपनी कुछ सीमायें है जो मुख्यत: निम्न प्रकार है|
(1) कृ०ग० के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति अथवा पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है तथा कृ०ग० तक्नीशियन को मादा पशु प्रजनन अंगों की जानकारी होना आवश्यक है|
(2) इस विधि में विशेष यंत्रों कीआवश्यकता होती है|
(3) इस विधि में असावधानी वरतने तथा सफाई का विशेष ध्यान ण रखने से गर्भ धारण की दर में कमी आ जाती है|
(4) इस विधि में यदि पूर्ण सावधानी न वरती जाये तो दूर वर्ती क्षेत्रों आठवा विदेशों से वीर्य के साथ कई संक्रमक बीमारियों के आने का भी भय रहता है|

मुख्य पृष्ठ|उपकरणों का विवरण|प्रकाशन एवम दिशा निर्देश|डाउनलोड और प्रपत्र|कार्यक्रम और योजनाएं|सफल कहानियाँ |नीतियाँ|प्रशिक्षण और सेवाएँ|रोग
Visitor No.: 11443498   Last Updated: 06 May 2023