घरपरिचयनौकरी प्रोफाइलबजटक्रियाएँउपलब्धियांगैलरीसाइटमैपG2G Loginमुख्य पृष्ठ     View in English    
  मोबाइल पशु चिकित्सा एम्बुलेंस के माध्यम से घरद्वार पर आपातकालीन निःशुल्क पशु चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, 1962 (टोल फ्री) पर संपर्क करें।    
मुख्य मेन्यू
संगठनात्मक व्यवस्था
सामान्य सूचना
संस्थान का विवरण
विभागीय फार्म
सूचना का अधिकार (आरटीआई)
स्टाफ स्थिति
टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी
शिकायत प्रकोष्ठ
भर्ती एवं पदोन्नति नियम
नियुक्ति एवं पदोन्नति आदेश
हि० प्र० स्टेट वेटनरी कौंसिल
हि० प्र० पैरा- वेटनरी कौंसिल
राज्य पशु कल्याण बोर्ड
अन्य मुख्य लिंक्स
विभागीय लोगो
हि० प्र० गौसेवा आयोग
सब्सिडी योजनाओं के लिए आवेदन करें
लम्पी चमड़ी रोग
हमसे सम्पर्क करें
निविदा सूचना
परिचय

Content Editor Web Part

परिचय

 

पशुपालन तथा दुग्ध से सम्बंधित गतिविधियां मनुष्य जीव का एक अभिन्न अंग रही है | हिमाचल प्रदेश में पशुधन अधिक संख्या में उपलब्ध है तथा प्रदेश में पशुपालक अपनी आजीविका के लिए पशुपालन गतिविधियों से जुड़े हैं | 19वीं पशुधन जनगणना- 2012 के अनुसार हिमाचल प्रदेश में कुल पशुधन सँख्या 48,44,431 है, जिसमें से 21,49,259 गोजातीय, 7,16,016 भैंसे, 8,04,87 भेड़ें, 11,19,491 बकरीयां, 15,081 घोड़े तथा टट्टू हैं | इसके अतिरिक्त प्रदेश में 11,04,476 कुक्कट भी हैं |





हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने के समय प्रदेश में केवल 9 पशु चिकित्सालय थे तथा पहाड़ी नस्ल के पशु ही प्रदेश में पाले जा रहे थे | पशुपालन विभाग का गठन प्रदेश में 1948 में किया गया तथा प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने हेतु विभिन्न परियोजनाएं चलाई गई |ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढावा देने के लिए दुग्ध उत्पादन में वृद्धि तथा नस्ल सुधार के कार्यक्रमों को हाथ में लिया गया | वर्ष 1951 में गायों की नस्ल सुधार हेतु कई कार्यक्रम अखिल भारतीय मुख्य ग्राम (Key Village Scheme) योजना के तहत आरम्भ किये गए तथा दो मुख्य प्राकृतिक गर्भाधान केन्द्र कोटगढ़ तथा सोलन में स्थापित किये गए, जहाँ लाल सिंधी नस्ल के बैलों को नस्ल सुधार (Cross Breeding) कार्यक्रम के लिए रखा गया | इन कार्यक्रमों का प्रभाव काफी उत्साहवर्धक रहा परन्तु इनका विस्तार-क्षेत्र काफी सीमित था | इसके बाद कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली को अपनाया गया तथा वर्ष 1954-55 में पहली बार जर्सी वीर्य तृण हवाई जहाज द्वारा बंगलोर से हिमाचल प्रदेश पहुँचाये गये | इसी अवधि दौरान नया पशुधन प्रजनन संस्थान कोठिपुरा, जिला बिलासपुर में आरम्भ किया गया जहाँ पर जर्सी नस्ल के पशुधन डेनमार्क से आयात कर कोठीपुरा फार्म पर पाले गये तथा उनका प्रदर्शन काफी उत्साहवर्धक रहा | पशुधन प्रजनन सुधार कार्यक्रमों में सबसे अहम योगदान इन्डोन्यूजीलैंड पशुधन सुधार परियोजना का रहा, जिसके तहत 175 शुद्ध जर्सी नस्ल के पशुओं को न्यूजीलैंड से 1974 में लाया गया तथा पालमपुर के विश्वविद्यालय परिसर में रखा गया | इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक वीर्य प्रयोगशाला न्यूजीलैंड सरकार के सहयोग से स्थापित की गई | इसके अतिरिक्त 1974 में ही हिम वीर्य प्रयोगशाला पश्चिम जर्मनी सरकार की सहायता से जिला मंडी के भंगरोटू स्थान पर स्थापित की गई | इन दोनों हिम वीर्य प्रयोगशालाओं ने हिमाचल प्रदेश में कृत्रिम गर्भाधान के कार्यक्रमों को नए आयाम पर पहुंचानें हेतु अपना अहम योगदान दिया है |

विभाग की मुख्य गतिविधियाँ

  • पशु चिकित्सा सेवाएं तथा रोगों की जाँच करना |
  • नस्ल सुधार (Cross Breeding) तथा स्वदेशी पशुओं के संरक्षण के माध्यम से पशुधन उत्पादों में वृद्धि करना |
    •      गाय व भैंस विकास कार्यक्रम |
    •      भेड़ विकास कार्यक्रम |
    •      अंगोरा खरगोश विकास कार्यक्रम |
    •      कुक्कुट विकास कार्यक्रम |
  • पशुओं के पोषण स्तर में सुधार करना |
  • वैज्ञानिक तरीकों से पशुपालन को बढावा देने के लिये पशुपालकों को प्रशिक्षण देना |
  • विस्तार सेवा तथा प्रौधोगिकी का हस्तांतरण | 
मुख्य पृष्ठ|उपकरणों का विवरण|प्रकाशन एवम दिशा निर्देश|डाउनलोड और प्रपत्र|कार्यक्रम और योजनाएं|सफल कहानियाँ |नीतियाँ|प्रशिक्षण और सेवाएँ|रोग
Visitor No.: 11534122   Last Updated: 06 May 2023