SNo | Title | Description | Solution | Attachment |
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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नाइट्रोजन के प्रमुख उर्वरक कौन से हैं और उनमें नाइट्रोजन की मात्रा कितनी है ?
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नाइट्रोजन के प्रमुख उर्वरक निम्लिखित हैं | प्रत्येक उर्वरक में उपस्थित नाइट्रोजन कोष्ठ में दी गई है :
यूरिया (46% ) कैल्शियम साइनामाईड (21%)ए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (25% तथा 26% )ए अमोनिया सल्फेट नाइट्रेट (26%)ए अमोनिया नाइट्रेट (33-34%) ए अमोनिया सल्फेट (20%) ए अमोनिया क्लोराइड (24-26%) ए कैल्शियम नाइट्रेट (15.5%) ए सोडियम नाइट्रेट (16%) ए अमोनिया घोल (20-25%) ए अमोनिया एनहाईड्रेस (82%) ए तथा अमोनिया फास्फेट (20% नाइट्रोजन + 20% पी2ओ5), पोटेशियम नाइट्रेट (13% नाइट्रोजन तथा 44% पोटाशियम), यूरिया सल्फर(30 से 40%) नाइट्रोजन तथा 6 से 11% गंधक), दी अमोनियम फास्फेट (18% नाइट्रोजन तथा 46% पी2ओ5) |
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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किसान खाद तथा यूरिया में क्या अन्तर है जबकि दोनों में ही नाइट्रोजन तत्व ही होता है?
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किसान खाद के अन्दर उपस्थित नाइट्रोजन की आधी मात्रा अमोनिया तथा आधी मात्रा नाइट्रेट रूप में होती है जबकि यूरिया में नाइट्रोजन रूप में होती है, जो बाद में रूपान्तरित होकर पहले अमोनियम तथा फिर नाइट्रेट में बदलती है| मृदा के अन्दर किसान खाद की प्रतिक्रिया उदासीन तथा यूरिया की आरम्भ में क्षारीय तथा बाद में अम्लीय हो जाती है| किसान खाद में नाइट्रोजन के अलावा 9.1 प्रतिशत कैल्शियम भी होता है| यूरिया में नाइट्रोजन 46 प्रतिशत होती है जबकि किसान खाद में 25 प्रतिशत या 26 प्रतिशत तक|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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खड़ी फसल में यूरिया का छिड़काव कैसे करें?
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खड़ी फसल की आयु, अवस्था तथा प्रकार के अनुसार 2 -3 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव किया जाता है| घोल की मात्रा का निर्धारण फसल की वानस्पतिक वृद्धि तथा छिड़कने वाले यंत्र पर निर्भर करेगा| खाद्यान की फसलों पर हसतचलित यंत्र से छिड़काव करने के लिए 200–300 लीटर घोल प्रर्याप्त होता है| यदि 2 प्रतिशत का 250 लीटर घोल छिड़कना हो तो 5 किलो यूरिया को 10–15 लीटर पानी में पहले अच्छी तरह से घोलकर, फिर आयतन 250 लीटर स्वच्छ पानी द्वारा बना लें| फिर जब आकाश साफ हो, ओस सूख गयी हो, हवा का दबाव कम हो तथा वर्षा का कोई आसार ना हों तो छिड़काव कर देना चाहिए| फिर आवश्यकतानुसार 2-3 छिड़काव 12-15 दिन के अन्तराल पर करके पूरा लाभ उठाया जा सकता है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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फास्फोरस की कमी के सामान्य लक्षण क्या हैं?
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फास्फोरस की कमी से पौधों की पत्तियों का रंग बैंगनी या गहरा हों जाता है| पुराणी पत्तियां आरम्भ में पीली और बाद में लाल – भूरी पड़ जाती है| पत्तियों के शिरे सूखने लगते हैं| पौधों की वृद्धि दर प्रतिदर कम हों जाती है| पौधे बौने,पतले सीधेतथा कम पत्तियों वाले होते हैं |
कमी में जड़ों का विकास कम होता है, फुटाव कम होता है| बालियां दाने कम बनते हैं| दाने देर से बनते हैं| फसल देर से पकती है| दाने की अपेक्षा भूसे का अनुपात बढ़ जाता है| पौधों पर रोगों का हमला अधिक होता है| दलहनी फसलों में जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कम होता है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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पोटैशियम का पौधों के पोषण में क्या कार्य है?
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पोटैशियम, पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण की कुशलता वृद्धि करता है| यह दोनों के आकार तथा भार को बढ़ाता है| नाइट्रोजन की दक्षता को बढ़ाता है| पोटैशियम कोशिका पारगम्यता में सहायक होता है कार्बोहाइड्रेटो के स्थानान्तरण में सहायता करता है और पौधे में लोहे को अधिक चल रखता है| पोटैशियम पौधों में रोगों के प्रति प्रतिरोधिता को बढ़ाता है| प्रोटीन संक्ष्लेषण को बढ़ाता है पौधे की सम्पूर्ण जल व्यवस्था को नियन्त्रित करता है और पौधों को पीले तथा सूखे से रक्षा करता है| पौधों के तने को कठोरता प्रदान करके गिरने से बचाता है| इसके अतिरिक्त पौधों की विभिन्न क्रियाओं को नियन्त्रित करने वाले एन्जाइमों को संचालित करता है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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रासायनिक उर्वरक श्रेष्ठ है या अन्य जैविक खादें| इनमे से कौन से खाद इस्तेमाल की जाए ? क्या उर्वरकों के निरन्तर प्रयोग से भूमि की दशा बिगड़ जाती है?
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जैविक खादें और उर्वरक ही एक दूसरे के सहयोगी है| जोकि एक – दूसरे की फसल द्वारा प्रयोग करने की क्षमता बढ़ाते है| उर्वरकों को असन्तुलित मात्रा, भूमि की किस्म के अनुसार सही उर्वरक न प्रयोग करने से भूमि की दशा थोड़ी बिगड़ सकती है| परन्तु इन दोनों ही बातों का ध्यान रखें तो उर्वरकों के निरन्तर प्रयोग से भी दशा पहले की अपेक्षा सुधर सकती है| अकेले जैविक खादों द्वारा पोषक तत्वों की पूरी मात्रा देना असम्भव ही है क्योंकि उनको पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ति करने की क्षमता सीमित ही है| दूसरी ये अधिक मात्रा में उपलब्ध भी नहीं है| तीसरे इनका ढोना और खेत में डालना काफी महंगा पड़ेगा हम तो यही कहेगे की थोड़ी मात्रा में जैविक खाद सभी खेतों में प्रयोग करें और पोषक तत्वों की पूर्ति उर्वरकों से करें|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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मैग्नीशियम की कमी के क्या लक्षण है?
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मैग्नीशियम की कमी में खासकर पुरानी पत्तियों का क्लोरिफल कम हो जाता है फलस्वरूप पौधा पीला हों जाता है| पीलापन पत्ती की शिराओं के बीच वाले भाग पर अधिकाधिक दिखाई देता है| सामान्तर शिराओं वाली पत्तियों में हरे तथा भूरे रंग की धारियां से बन जाती है क्योंकि शिराएं हरी रहती है लेकिन बीच के भाग का रंग उड़ जाता है| यदि कमी लगातार देर तक बनी रहे तो फिर रंग लाल व भूरा हों जाता है और कई बार पत्तियां सूख भी जाती है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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गन्धक की कमी के लक्षण क्या है?
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गन्धक की कमी के लक्षण मुख्यता रेतीली जमीनों में प्रकट होते है| कमी के लक्षण मुख्यता नयी पत्तियों पर प्रकट होते है| पत्तियों का हरा रंग समाप्त होना शुरू हों जाता है| कई बार रंग धारियों में उड़ता है चौड़ी पत्ती वाले पौधों में पत्तियों का रंग पीला या सुनहरी पीला हों जाता है| पत्तियों के किनारे ऊपर या नीचे की ओर मुड जाते है| और प्याले जैसे आकार के दिखने लगते है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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कौन सी फसलों को गन्धक की अधिक आवश्यकता होती है?
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तिलहनी फसलों को सबसे अधिक मात्रा में गन्धक की आवश्यकता होती है| इसके साथ गन्धक दलहनी फसलों को भी चाहिए| अन्य फसलों की आवश्यकता आमतौर पर मिट्टी से पूरी हों जाती है| लेकिन उपरोक्त फसलों के लिए फास्फोरस के स्त्रोत सिंगल सुपरफास्फेट अथवा जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि सिंगल सुपर फास्फेट में 11 – 12 तथा जिप्सम में 18 – 19 प्रतिशत गन्धक होती है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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जस्ते का पौधों के पोषण में क्या महत्व है?
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जस्ता अनेकों एंजाइमों का एक घटक होता है जैसे कार्बोनिक एनहाइड्रेस, एलकोहल जिहाइड्रोजेनेस और विभिन्न पेप्टीडेस| अत: यह अनेको एंजाइमीप्रतिक्रियों के लिए आवश्यक होता है| यह वृद्धि हार्मोनों के निर्माण में भी सहायता करता है| जिससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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क्या जिंक सल्फेट और यूरिया मिलाकर छिड़के जा सकते है?
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हां बहुत ही सफलतापूर्वक दोनों को मिलाकर छिड़का जा सकता है| जिंक सल्फेट का घोल तेजाबी होता है| जबकि यूरिया का घोल क्षारीय होता है अत: दोनों को साथ मिलाकर छिड़कने से सामान्य घोल मिलता है| साधारणतया फसलों में जस्ते की कमी के साथ नाइट्रोजन की कमी होती है| अत: दोनों को एक साथ छिड़कने से दोनों की कमी दूर हों जाती है| यदि फसल में नाइट्रोजन की कमी ना हों तो फिर यूरिया का छिड़काव नहीं करना चाहिए|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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लोहे की कमी के क्या लक्षण है?
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लोहे की कमी के लक्षण नयी पत्तियों पर दिखाई देते हैं| शिराओं के बीच से पत्तियों का रंग उड़ जाता है| इसके बाद यही प्रक्रिया पुरानी तथा पुरे आकार की पत्तियों में होने लगती है| लोहे की कमी में शिराओं का भी रंग उड़ जाता है| पूरी पत्ती कई बार सफेद दिखाई देने लगती है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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लोहे की कमी कैसे दूर करें?
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लोहे की कमी को दूर करने के लिए सबसे उत्तम साधन है कि फसल पर 1-2 प्रतिशत फैरस – सल्फेट घोल के 250 – 300 लीटर प्रति एकड़ के 2-3 छिड़काव 12-15 दिन के अन्तराल पर करने से लोहे की कमी दूर की जा सकती है| साधारणतया यदि मिट्टी में घुलनशील फैरस सल्फेट डाला जाता है तो वह शीघ्र आक्सीजन से क्रिया करके अघुलनशील फैरिक रूप में बदल जाता है जो पौधों के लिए अप्राप्य हों जाता है| इसके अतिरिक्त आयरन चोलेट को भी फसल पर छिड़ककर लोहे की कमी को ठीक किया जा सकता है| उच्च पी.एच. मान पर सबसे अधिक उपयोगी सिद्ध होता है| फैरस सल्फेट के घोल को उदासीन कर लेना भी आवश्यक है क्योंकि यह तेजाबी होता है| 0.5 – 1.0 प्रतिशत चुने का छना पानी इसके तेजाबी असर को कम कर देता है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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अच्छी कम्पोस्ट किस प्रकार तैयार करें?
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कम्पोस्ट बनाने से पहले फार्म के जो भी कचरा उपलब्ध हों इकट्ठा कर लिया जाता है उस सारे को आपस में मिला दिया जाता है| फिर 15 से 20 फुट लम्बा, 5-6 फुट चौड़ा, 3-3 ½ फुट गहरा गड्डा बना लिया जाता है फिर कचरे कि एक फुट गहरी तह बिछा दी जाती है फिर उसे गोबर के घोल से अच्छी तरह गीला कर दिया जाता है| यही क्रम तब तक अपनाया जाता है जब तक कि कचरे का स्तर भूमि की सतह से 2-2 ½ फुट ऊँचा ना हों जाए| फिर ऊपर से इसे मिट्टी से ढक दिया जाता है| यदि गर्मी में गड्डा भरा हों तो 15-20 दिन के अन्तर पर 1-2 बार गड्डे में पानी छोड़ देना चाहिए ताकि कचरे को गलाने के लिए पर्याप्त नमी बनी रहे| वर्षा ऋतु तथा जाड़ोंमें पानी डालने कि आवश्यकता नहीं | लगभग 4 माह में खाद तैयार हों जाएगी| जिसमे 0.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.15 प्रतिशत फास्फोरस तथा 0.5 प्रतिशत पोटाश होगी|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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दलहनी फसलों में राईजोबियम टीका लगाने से क्या लाभ हैं ?
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राईजोबियम का टीका अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग होता है टीका लगाने से राईजोबियम के जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और उनकी क्रियाशीलता बढ़ती है जिससे वे वयुमंडल से अधिक से अधिक नाइट्रोजन लेकर पौधों की जड़ों में स्थित ग्रन्थियों में स्थिर करते है जोकि दलहन के पौधों को मिलती है और बाद में उगाई जाने वाली फसल का उपज बढ़ाने में भी सहायक होती है |
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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राईजोबियम कल्चर किन-किन फसलों के काम आता है?
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यह निम्न दलहनी फसलों के काम आता है – चना, मसर, मटर, बरसीम, रिजका, मूंग, उडद, लोबिया, अरहर, ग्वार, सोयाबीन, तथा मूंगफली| हरेक फसल का टीका अलग-अलग होता है|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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राईजोबियम टीका लगाने की विधि क्या है ?
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राईजोबियम कल्चर का प्रयोग बीज के साथ बुआई के समय निम्नलिखित विधि के अनुसार करें |
1. 50 ग्राम गुड़ या शक्कर को 300 ग्राम पानी में घोल लें | पानी की मात्रा बीज की मात्रा के अनुसार घटाई बढ़ाई जा सकती है|
2. एक एकड़ के बीजों को साफ फर्श या तिरपाल पर बिछा लें|
3. गुड़ के घोल को धीरे-धीरे बीजों को डालें | फिर घोल को बीज के साथ मिलाएं यदि घोल कम पड़ें तो मात्रा बढ़ा लें|
4. इसके बाद कल्चर की थैली को खोलकर कला पाउडर बीजों पर छिड़कें| अच्छी तरह हाथ से मिलाएं ताकि सारे बीज पर काले पाउडर का लेप हों जाए|
5. कल्चर से उपचारित बीजों को 5-6 घण्टे छाया में सुखाकर बिजाई के लिए प्रयोग करें|
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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दलहनी फसलों के बाद गेहूं में कितनी नाइट्रोजन डालनी चाहिए ?
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यदि दलहनी फसलों को चारे के लिए प्रयोग कर लिया जाए तो गेहूं में 25 प्रतिशत कम नाइट्रोजन दें | दाने के लिए पकाई गई दलहन फसल के बाद गेहूं की फसल को नाइट्रोजन की पूरी मात्रा 48 किलोग्राम प्रति एकड़ का ही प्रयोग करें |
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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अरहर की फसल काटने के बाद गेहूं की फसल कुछ पीली रहती है एवं उपज भी कम मिलती है ऐसा क्योँ ?
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अरहर की फसल पकते समय खेत में भारी मात्रा में जड़ें तथा पत्तियां छोड़ती है | जिनका गेहूं बोने के बाद गलना सड़ना शुरू होता है क्योंकि अरहर के खेत अक्तूबर नवम्बर में खाली होते है | इस समस्या से बचने के लिए अरहर फसल काटने के तुरन्त बाद सूखे खेत की जुताई कर देनी चाहिए और खेत को पलेवा करते समय 12-15 किलो नाइट्रोजन ( 25-30 किलो यूरिया) प्रति एकड़ डालने से पौधों के अवशेष समय से गल-सड़ जाते है | फलस्वरूप गेहूं की फसल पीली नही पड़ती | अरहर की जड़ो को निकलना भी श्रेयस्कर रहता है |
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मिट्टी परीक्षण सम्बन्धी
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यूरिया छिड़काव के क्या लाभ है ? किन परिस्थितियों में यह अधिक उपयोगी रहता है ?
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यूरिया छिड़काव से नाइट्रोजन की आंशिक कमी को बहुत ही शीघ्रता के साथ ठीक किया जा सकता है | छिड़काव के 1-2 दिन बाद ही फसल गहरे हरे रंग की हों जाती है | पानी की कमी की स्तिथि में छिड़काव विधि अधिक उपयोगी रहती है | क्योंकि छिड़काव के बाद यदि किसी कारण पानी नही भी मिल पाये तो भी संतोषजनक लाभ हो जाता है जबकि मिट्टी में नाइट्रोजन उर्वरक प्रयोग करते समय पर्याप्त मात्रा में नमी का होना या तुरन्त सिंचाई लगाना नितांत आवश्यक होता है | जहां भूमि समतल नहीं है वहां भी यूरिया का छिड़काव लाभकारी रहता है|
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